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________________ ज्यों था त्यों ठहराया जो बर्लिन का हिस्सा रूसियों के हाथ में है पूर्वी बर्लिन--वहां से निकल भागना बहुत मुश्किल है। लेकिन एक संन्यासी वहां से भाग, निकला। कार की डिग्गी में छिप कर आना पड़ा। खतरा मोल लिया। जीवन के लिए खतरा था। पकड़ जाता, अगर डिग्गी खोली जाती, जोखम उठाई...। डिग्गी खुल जाती, तो फंस जाता--बुरी तरह फंसता। शायद दस-पच्चीस साल की सजा काटता। शायद सारी जिंदगी जेलखाने में बीतती। क्योंकि कम्यूनिस्ट फिर कोई कंजूसी नहीं करते सजा देने में। मगर जोखम उठा ली। कार की डिग्गी में बैठ कर भाग निकला। अकेला ही नहीं भागा। अपने बच्चे को, पत्नी को--तीनों एक बड़ी कार की डिग्गी में किस तरह समाए! किस तरह छिपे रहे! किस तरह यात्रा की! अनूठी कहानी है। रोमांचक है। आ गया यहां। लोग आ रहे हैं दूर-दूर से। और यहां आ कर अनस्यूत हो जाते हैं। यहां एक धागे में जुड़ जाते हैं। एक प्रेम का धागा! लोग चकित होते हैं बाहर से आ कर कि कैसे इस कम्यून का काम चलता है। क्योंकि मैं तो कभी देखता नहीं जा कर। मैं तो कुछ भी नहीं देखता जाकर। कहां क्या हो रहा है--मुझे पता नहीं। इस कम्यून के आफिस में मैं आज तक नहीं गया हूं। छह साल में एक बार भी नहीं गया हूं। आश्रम में भी कभी पूरा नहीं घूमा हूं। अपने कमरे से इस स्थल तक, और इस स्थल से अपने कमरे तक! लेकिन प्रेम का एक धागा--और लोग काम में सक्रिय हैं। न कोई उनको काम में लगा रहा है, न कोई उनकी छाती पर बैठा हुआ है; न कोई उन्हें धक्के मार रहा है कि काम करो-- लोग काम में लगे हैं, सृजन में लगे हैं। एक प्रेम ने सबको जोड़ दिया है। कोई किसी से पूछता नहीं कि हिंदू हो, कि मुसलमान हो, कि ईसाई हो, कि जैन हो, कि बौद्ध हो--क्या हो कि क्या नहीं हो! नीग्रो हो, अमरीकन हो, भारतीय हो--किसी को चिंता नहीं पड़ी। किसी को लेना-देना नहीं है। सारा कचरा हो गया। ये सब व्यर्थ की बातें लोग बाहर कचरा-घर में फेंक आए। इसे मैं कहता हूं--सुई। सुई जोड़ना जानती है--तोड़ना नहीं। और ध्यान में लीन हो रहे हैं। इसे मैं कहता हूं--मोमबत्ती। अपने भीतर की ज्योति जलाने में लगे हैं। इसे मैं कहता हूं--अमृत की खोज। कैसे हम मृत्यु के जो पार है, उसे जान लें--इसका अन्वेषण चल रहा है। और तो यहां कोई दूसरा काम नहीं हो रहा है। दिनेश भारती, ये तीनों काम यहां हो रहे हैं--मोमबत्ती का, सुई का...। और राबिया ने यह जो बाल दिया कि हसन कब तक मुर्दे में उलझे रहोगे। अब जागो। सुबह हो गई--उठो। दूसरा प्रश्न: भगवान, हर ओर सुनाती अपना स्वर, मैं ढूंदूं तुमको किधर किधर! पाया ने देख बैठी थक कर, Page 58 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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