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________________ ज्यों था त्यों ठहराया खटखटाया। कोई खोलता नहीं; भीतर से बंद है। दरवाजा तोड़ा तो वहां तो सब मिट्टी थी। सांझ विदा ले कर गए थे, तब सब ठीक था। सुबह आए तो मिट्टी थी। घर का कोई मौजूद भी न था वहां। और वर्षा इतनी तेज थी कि बीच में एक नाला आया हुआ था कि दो दिन तक लाश वहां पड़ी सड़ती रही! कोई खबर भी नहीं पहुंचा सका जा कर चांदा। क्योंकि वह नाला इतना भयंकर और पहाड़ी, कि उसको पार करना मुश्किल! और लाश को लाया तो जा नहीं सकता था। तो खबर करने का भी कोई प्रयोजन न था। दो दिन लाश सड़ती रही। रेखचंद्र पारेख कीमती आदमी थे। मुझे पहचानने वाले उन थोड़े से लोगों में थे, जिन्होंने सबसे पहले मुझे पहचाना। मगर फिर भी देर कर दी! समझ न पाए कि यह जिंदगी हमेशा चलने वाली नहीं। कब रास्ता अलग हो जाएगा, कहां अलग हो जाएगा--कुछ पता नहीं! अभी है, अभी नहीं! एक क्षण में बात हो जाती।... मुझे पहली दफा देखा, तो पहचान गए। और यूं पहचाना कि सारे चांदा के लोग चकित थे। क्योंकि रेखचंद्र पारेख चांदा में प्रसिद्ध थे कि उनसे बड़ा कंजूस वहां कोई नहीं है। उनके द्वार पर कोई भिखारी भीख नहीं मांगता था। रेखचंद्र पारेख का मकान है! वहां भीख मांगने से कोई सार नहीं। मिलने वाली नहीं। दुतकारे जाओगे। कोई भिखारी अगर मांगने खड़ा हो जाता, तो उसका मतलब यह था कि नया-नया है। गांव में पहली दफा आया है। गांव के लोग कह देते सड़क चलते, कि भैया, तू बेकार खड़ा है! यह जगह नहीं है, जहां कुछ मिलेगा! और जब मुझे देखा और पहचान गए...। उनकी पत्नी मुझे ले गई थीं। उनकी पत्नी और भी संतों के पास उन्हें ले जाती रहीं। क्योंकि पत्नी का खयाल था कि पति को मार्ग पर लाया जाए। यह क्या धन-पैसे के पीछे ये पड़े हैं! ये धार्मिक नहीं हैं। पत्नी को धर्म में रस था। साधु-संतों में रस था। मगर रेखचंद्र पारेख को कोई साधु-संत जमा नहीं। आंख थी उस आदमी के पास पहचानने वाली। तो धोखा नहीं खाया। कोई संत सफियान जैसा आदमी धोखा नहीं दे सका। कोई करपात्री महाराज जैसा आदमी धोखा नहीं दे सका। कोई पुरी के शंकराचार्य को रेखचंद्र मानने वाले नहीं थे। उनकी पत्नी मुझे ले गई थीं अपने घर, इसी आशा में कि शायद और तो कोई जमा नहीं, मैं जम जाऊं! मुझे देख कर ही रेखचंद्र पारेख ने कहा कि अब मजा आ गया! मगर मैं कहे देता हूं, उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, कि यह मसजिद मुसलमान पर गिरेगी; मुझ पर नहीं। तू दब कर मरेगी इस मसजिद में। तू लाई है मुझे दबाने; तू मुझे बहुत जगह ले गई कि किसी को मेरे सिर पर चढ़ा दे। मगर यह मसजिद तेरे सिर पर गिरेगी। मेरा तो तालमेल हो गया; मुश्किल तेरी होगी; तेरा धर्म अड़चन में पड़ेगा। मैं अधार्मिक हैं। मैं नास्तिक हं। और यह पहला आदमी है, जो ऐसी भाषा बोलता है कि नास्तिक भी आस्तिक हो जाए! और सच ही उन्होंने मुझसे कभी तर्क न किया। जो सबसे तर्क करते रहे, कभी मेरे विरोध में एक शब्द न कहा। Page 55 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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