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________________ ज्यों था त्यों ठहराया के शिखर से उतर कर नीचे आना पड़ा है। और जितना आम आदमी के करीब आओगे, उतना ही सत्य को न कह सकोगे। आम आदमी की भाषा में सत्य को बिठाना अर्थात सत्य को काटना, सत्य के ऊपर झूठ की परतें चढ़ानी होंगी। जैसे कड़वी दवा की गोली पर हम शक्कर की पर्त चढ़ा देते हैं। कड़वी दवा शायद, कड़वी गोली शायद गटकी न जा सके। जरा-सी शक्कर की पर्त! कंठ के नीचे उतर जाए, फिर तो कुछ स्वाद आता नहीं। सत्य भी बहुत कड़वा है। बुद्ध ने कहा है, झूठ पहले मीठा, फिर कड़वा; सत्य पहले कड़वा, फिर मीठा। सत्य कड़वा इसलिए है कि हम झूठ के आदी हो गए हैं। झूठ की मिठास हमें भा गई। झूठ की माया हमें भा गई। झूठ बड़ा सम्मोहक है--बड़ा सांत्वनादायी। सत्य झकझोर देता है, जैसे तूफान आए, अंधड़ आए। सत्य बहत बेरहम है। तो एक तो वे बुद्धपुरुष हुए, जिन्होंने शक्कर की पर्त चढ़ाई--करुणावश। इस ढंग से बात कही कि तुम्हारे कंठ में उतर जाए। मगर उनके कहने के ढंग के कारण ही तुमने शक्करशक्कर तो चुन ली और वह जो कड़वा सत्य था, वह फेंक दिया। तुम भी बड़े होशियार हो! जब तक शक्कर रही, तब तक तुम गोली को मुंह में रखे रहे; कंठ के नीचे नहीं उतरने दिया। और जैसे ही कड़वाहट आई--थूक दिया। चढ़ाई थी शक्कर की पर्त समझदारों ने कि कंठ के नीचे उतर जाए। मगर तुम्हारी नासमझी कुछ उनसे कम नहीं। उनकी समझदारी होगी बड़ी; तुम्हारी नासमझी बड़ी है! उनका ज्ञान होगा अनंत, तुम्हारा अज्ञान अनंत है! तुम कुछ पीछे नहीं! तुम भी बड़े चालबाज हो। तो तुम शक्कर शक्कर तो पी गए! मीठा-मीठा गप्प, कड़वा कड़वा )। यह तुम्हारा तर्क है। सो उनकी मेहनत व्यर्थ गई। उनकी मेहनत को व्यर्थ जाता देख कुछ बुद्धों ने सत्य को वैसा ही कहा; बिना कोई पर्त चढ़ाए--कि पीना हो तो पी लो। यह रहा। कड़वा है। फिर मत करना। थूकने का सवाल नहीं उठता। कड़वा है--यह जान कर ही पी लो। मैं भी ऐसी ही भाषा बोल रहा हूं, जो कड़वी है, कि पीछे तुम यह न कहो कि मिठास का धोखा दे दिया; कि पीछे कोई यह न कह सके कि हमें बातों में भरमा लिया। मैं सत्य को वैसा ही खालिस, बिना किसी मिठास के...कड़वा है, तो कड़वा; तुम्हें जगा कर कह देना चाहता हूं कि कड़वा है, पीना हो तो कड़वेपन से राजी हो जाओ। आग है। जलाएगी, भस्म कर देगी। तुम्हें सचेत कर के, सावधान कर के दे रहा हूं। इसलिए जिन्हें लेना है, वही मेरे पास आएंगे। यहां भीड़भाड़ इकट्ठी नहीं हो सकती। यहां कोई प्रसाद नहीं बंट रहा है! यहां क्रांति बंट रही है। राबिया उन्हीं थोड़े से लोगों में से है, जिसने शक्कर की पर्त नहीं चढ़ाई। एक दृष्टि से तो दिखाई पड़ेगा कि वे करुणावान हैं, जिन्होंने पर्त चढ़ाई। और वे करुणावान थे, इसलिए पर्त चढ़ाई। मगर तुमसे हार गए। मैं तो मानता हूं कि वे ही ज्यादा करुणावान Page 47 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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