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________________ ज्यों था त्यों ठहराया प्रीतम से लाग लगाओ तो कुछ बात बने भीतर का राग जगाओ तो कुछ बात बने ध्यान का चिराग जलाओ तो कुछ बात बने जल जाए अहंकार दमक उठो कुंदन से ऐसी इक आग जलाओ तो कुछ बात बने। तीसरा प्रश्नः भगवान, मैं आपको कब समझंगा? समझने में बाधाएं क्या है उपाय क्या है? चंद्रकांत! समझने की बात ही गलत है। यहां समझने को क्या ? ध्यान समझने की बात नहीं है। और मेरा तो शब्द शब्द ध्यान में डुबोया हुआ है, भिगोया हुआ है। पीयो! ये समझने इत्यादि की बातें बचकानी हैं। समझ तो मन की होती है, पीना हृदय का होता है। पीओगे तो भर पाओगे। समझ समझ कर तो कचरा ही जुड़ता जाएगा। समझने को यहां कुछ भी नहीं, डूबने को है। यह शराब है - खालिस शराब! अंगूर की नहीं, आत्मा की यह मंदिर नहीं, मयकदा है। यहां जो मेरे पास आ बैठे हैं, इनको तुम साधारण धार्मिक लोग मत समझो जिनको तुम मंदिर और मस्जिद में पाते हो, ये वे नहीं हैं। ये रिंद हैं। ये पियक्कड़ हैं ये पीने को आ कुछ और ढंग है। तुम समझने की बात उठाओगे, तो चूक से पीना होता है प्रेम से। ; हां, जिसने प्रेम किया, वह समझ भी गया। समझ अपनेजैसे तुम्हारे पीछे छाया चली आती है। जुटे हैं। यहां कुछ और रंग है, जाओगे। समझना होता है तर्क समझ कर कौन समझ पाया है? आप चली आती है प्रेम के पीछे, प्रेम ही समझ सकता है। और जिन लोगों ने कहा है, प्रेम अंधा है, वे पागल हैं। वासना अंधी होती है, मोह अंधा होता है। प्रेम तो आंख है- अंतर्तम की प्रेम को अंधा मत कहो। वासना निश्चित अंधी होती है वह देह की है। राग भी अंधा होता है वह मन का है और प्रेम तो आत्मा का होता है वहां कहां अंधापन ! वहां कहां अंधियारा? वहां तो बस आंख ही आंख है। वहां तो दृष्टि ही दृष्टि है। इसलिए जो उसे पा लेता है, उसे हम द्रष्टा कहते हैं, आंख वाला कहते हैं। तुम पूछते हो; मैं आपको कब समझंगा ? अरे, अभी समझो! कब? कल का क्या पता है? मैं रहूं, तुम न रहो। तुम रहो, मैं न रहूं। मैं भी हूं तुम भी रहो, लेकिन साथ छूट जाए। किस मोड़ पर हम बिछुड़ जाएं, कहां राह अलग-अलग हो जाए, किस पल कौन जाने ! भविष्य तो अज्ञात है। कब की मत पूछो, अब की पूछो। इस देश के समस्त महान सूत्र ग्रंथ अब से शुरू होते हैं। ब्रह्मसूत्र शुरू होता है: अथातो ब्रह्म जिज्ञासा- अब ब्रह्म की जिज्ञासा। नारद का भक्ति-सूत्र शुरू होता है: अथातो भक्ति जिज्ञासा-अब भक्ति की जिज्ञासा। अब कब नहीं। अथातो! उस एक शब्द में बड़ा सार है। अब ! Page 39 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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