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________________ ज्यों था त्यों ठहराया हो जाए...! दिल तो हुआ इस खोजी का कि पिंजरा खोल दूं और तोते को उड़ा दूं, लेकिन तोता किसी और का है, झंझट खड़ी हो जाए! तो उसने कहा, अभी नहीं, रात देखूगा। सांझ जब सूरज डूब रहा था, तब भी तोता चिल्ला रहा था--स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, क्योंकि वह जो सराय का मालिक था, वह स्वतंत्रता के आंदोलन में जेल जा चुका था और जेल में उसे एक ही आकांक्षा थी--स्वतंत्रता, स्वतंत्रता...। जब निकला था बाहर तो अपने तोते को भी उसने राम-राम रटना नहीं सिखाया--स्वतंत्रता, स्वतंत्रता का पाठ सिखा दिया। मगर पाठ पाठ है। और मजा देखते हो, पाठ स्वतंत्रता का सिखा दिया और पिंजरे में तोते को बंद कर दिया! इतना न सूझा कि स्वतंत्रता का पाठ सिखाते हो, तो कम से कम इसे तो स्वतंत्र कर दो! रात वह सत्य का खोजी उठा, उसने पिंजरे का द्वार खोला, तोता सो रहा था उसे जगाया हिला कर और कहा, उड़ जा! मगर तोते ने तो अपने सींखचों को जोर से पकड़ लिया। चिल्लाए जाए स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, और पकड़े है सींखचों को! यात्री तो हैरान हुआ, उसने कहा कि इस शोरगुल में कहीं मालिक जग जाए तो कहेगा, मेरे तोते को उड़ाए देते हो, यह क्या बात है! तो उसने जल्दी से हाथ भीतर डाला कि तोते को पकड़ कर बाहर निकाल ले और खोल दे, मुक्त कर दे। लेकिन तोते ने उसके हाथ पर चोंचे मारी, उसके हाथ को लहूलुहान कर दिया अपनी चोंच से, और चिल्लाए जाए--स्वतंत्रता! वह आवाज लगाए जाए क्योंकि एक ही मंत्र सीखा था। सीखे मंत्रों की यही गति होती है। उधार मंत्रों की यही गति होती है। चिल्लाए जो--स्वतंत्रता! और सींखचे पकड़े हुए है। और जो हाथ स्वतंत्रता देने आ रहा है, उस हाथ पर चोटें कर रहा है, उसे लहूलुहान कर रहा है। मगर वह यात्री भी जिद्दी था। उसने तो किसी तरह खींच कर तोते को बाहर निकाल लिया और मुक्त कर दिया। निश्चिंत हो कर यात्री सो गया। सुबह जब उठा, तो चकित हुआ। तोता अपने पिंजरे में था! पिंजरे का द्वार अब भी खुला पड़ा था और तोता फिर चिल्ला रहा था--स्वतंत्रता, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता! ऐसी हमारी उधार दशा है। महत्वाकांक्षा--और परमात्मा को पाने की! यह तोता है, जो सींखचे को पकड़े हुए है और स्वतंत्रता चिल्ला रहा है। सींखचे छोड़ दो। और मजा यह है कि तोता तो सींखचे छोड़ दे तो भी जरूरी नहीं, क्योंकि हो सकता है पिंजरे का द्वार बंद हो; लेकिन तुम तो अपने ही द्वारा दरवाजा बंद किए बैठे हो! खोलो, तो अभी मुक्त हो जाओ। किसी और ने तुम्हारे दरवाजे को बंद नहीं किया है, तुमने ही अपनी सुरक्षा के लिए दरवाजा बंद कर लिया है। और अब चिल्ला रहे हो--स्वतंत्रता! मगर सभ्य आदमी ऐसे ही उलझन में है--दूसरों को ही धोखा नहीं देता, खुद भी धोखा खाता है। सभ्यता निपट पाखंड है। संस्कृति सत्य है। लेकिन ध्यान रहे, संस्कृति बंटी होती नहीं--न पूरब की, न पश्चिम की। जो भीतर गया, वहां कहां पूरब, कहां पश्चिम! वहां कहां भारत, कहां पाकिस्तान! वहां कहां हिंदू, कहां Page 33 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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