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________________ ज्यों था त्यों ठहराया करने वाले नहीं छोड़ते; वे मरे-मराए पर भी संस्कार करते चले जाते हैं! जो मर गए बहुत पहले, उन पर भी संस्कार थोपते चले जाते हैं! लाशों को भी रंगते रहते हैं। संस्कृति संस्कार ही नहीं है, संस्कृति मौलिक रूप से परिष्कार है। लेकिन परिष्कार के लिए ध्यान की कला चाहिए। और ध्यान हिंदू होता, न मुसलमान होता। ध्यान का अर्थ है: साक्षीभाव! ज्यूं था त्यूं ठहराया! तुम्हारे भीतर जो स्वरूप है, जो गहनतम तुम्हारी जीवन की ऊर्जा छिपी पड़ी है, जो तुम्हारा केंद्र है, उसमें ठहर जाना। पूर्ण विराम आ जाए। कोई दौड़ न रहे, कोई आकांक्षा न रहे, कोई महत्वाकांक्षा न रहे! ऐसी शांति घनी हो, ऐसा निर्विचार हो, ऐसा मौन हो कि कोई तरंग न उठे! झील ऐसे शांत हो रहे कि जैसे दर्पण हो गई। तो फिर जो है, वह झलकता है। जो है, उसका झलकना ही परमात्मा का अनुभव है। महत्वाकांक्षी व्यक्ति के मन में इतनी आपाधापी होती है, इतने विचारों की तरंगें होती हैं, इतनी लहरें होती हैं कि झील पर चांद का नक्श बने तो कैसे बने! टूट-टूट जाता है, बिखरबिखर जाता है। चांद तो एक है, मगर झील में जब लहरें होती हैं, तो अनेक खंडों में बिखर जाता है। प्रतिबिंब खंडित हो सकता है, चांद खंडित नहीं होता। उसी भेटवार्ता में मोरारजी देसाई ने कहा कि मुझे पंचानबे प्रतिशत सत्य मिल चुका है! पंचानबे प्रतिशत! यह कोई दुकानदारी है? लेकिन गुजराती मन! लाख करो, बनिया होने से छुटकारा नहीं हो सकता। वहां भी प्रतिशत चल रहा है! मैंने सुना, एक यहूदी को उसके एक मित्र ने पूछा कि सब ठीक-ठाक तो है? अभी-अभी उसने विवाह किया है। उसने कहा कि सब ठीक-ठाक है। बड़े आनंद में हूं। पत्नी क्या मिली, देवी है, अप्सरा है! ऐसी सुंदर शायद पृथ्वी पर दूसरी कोई स्त्री न हो। मित्र ने कहा, वह तो मुझे भी मालूम है कि स्त्री सुंदर है, मगर क्या मैं यह समझू कि तुम्हें पूरी कथा स्त्री की मालूम नहीं? तुम्हारे अलावा उसके चार प्रेमी और भी हैं! यहूदी ने कहा, उसकी चिंता न करो। अच्छे धंधे में बीस प्रतिशत लाभ भी बहुत है! रद्दी धंधे में सौ प्रतिशत लाभ का भी क्या करोगे? मिल जाए कोई डाकिन और उसमें सौ प्रतिशत अपनी हो, इससे यह बीस प्रतिशत अपनी, यह बहुत! यहूदी का मन बनिया का मन है। यहूदी शुद्ध गणित में सोचता है। मारवाड़ी हो कि गुजराती हो--न यहूदी का होता है। सत्य के भी खंड, उसमें भी प्रतिशत! यह कोई धन की और ब्याज की दुनिया है? पंचानबे प्रतिशत सत्य मिल चुका है! सत्य जब मिलता है, तो पूरा मिलता है, अखंड मिलता है। उसके खंड होते नहीं। उसके टुकड़े होते नहीं। सत्य के कोई टुकड़े कभी नहीं कर सका। सत्य के टुकड़े करोगे, तो सत्य सत्य ही नहीं है। झूठ के टुकड़े होते हैं। झूठ के खंड होते हैं। सत्य अखंड है, अविभाज्य है, अद्वय है। दो भी नहीं कर सकते, और ये तो सौ टुकड़े किए बैठे हैं! पंचानबे टुकड़े इनको मिल गए हैं, पांच टुकड़े और बचे हैं! अब यह पागलपन देखते हो? Page 31 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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