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________________ ज्यों था त्यों ठहराया जो हिंदू होकर बैठ गया, उसने एक अंगुली पकड़ ली। जो जैन होकर बैठ गया, उसने दूसरी अंगुली पकड़ ली। जो ईसाई होकर बैठ गया, उसने तीसरी अंगुली पकड़ ली। ये तीनों अंगुलियां अलग-अलग हैं। निश्चित जीसस की अंगुली अलग होगी। महावीर की अंगुली अलग होगी; बुद्ध की अंगुली अलग होगी; कृष्ण की अंगुली अलग होगी; अंगुलियां अलग-अलग होंगी। इनकी देहें अलग-अलग हैं, इनके रंग-रूप अलग-अलग हैं, इनकी भाषा अलग-अलग हैं, मगर जिस चांद की तरफ इशारा है, न ईसाई देखता उस चांद को, न हिंदू देखता, न बौद्ध देखता; किसी को उस चांद से मतलब नहीं, सबको अपनी-अपनी अंगुली की पड़ी है। अंगुली की पूजा चल रही है। बड़ी अजीब यह दुनिया है! मैंने सुना है, एक महात्मा के दो शिष्य थे। एक दोपहर महात्मा, गर्मी थी, लेटा। दोनों शिष्यों में झगड़ा हो रहा था, प्रतिस्पर्धा हो रही थी--कौन सेवा करे। महात्मा ने कहा, ऐसा करो, तुम मुझे बांट लो। यह झगड़ा बंद करो। बायां पैर एक का, दायां पैर एक का। महात्मा लेट गया। एक बायां पैर दबाने लगा; जिसका बायां पैर था, वह बायां दबाने लगा। जिसका दायां था, वह दायां दबाने लगा। नींद में महात्मा ने करवट बदली; बाएं पर दायां पैर पड़ गया। तो जिसका बायां था, उसने कहा, हटा ले अपने पैर को! मेरे पैर पर पड़ रहा उसने कहा, अरे देख लिए तेरे जैसे बहुत! कौन है, जो मुझसे कहे कि हटा ले! है कोई माई का लाल, जो मुझसे कह दे कि मेरा पैर हट जाए? नहीं हटेगा। कर ले जो तुझे करना है! उसने कहा, देख हटा ले! नहीं तो कुटाई कर दूंगा तेरे पैर की! उसने कहा, देखू तो तू कर कुटाई मेरे पैर की। अगर तेरे पैर को काट कर दो टुकड़े न कर दूं, तो मेरा नाम नहीं; मेरे बाप का नाम बदल देना! इनकी बातचीत सुनकर महात्मा की नींद खुल गई। आंखें बंद की हुईं उसने बात सुनी। उसने कहा, भाइयो, रुको, दोनों पैर मेरे हैं। न तेरा बायां है, न उसका दायां है! अब मेरे पैर की कुटाई और काटपीट मत कर देना! मगर यही हो रहा है। सत्य की काटपीट हो रही है, क्योंकि मेरा, तेरा! सत्य किसी का भी नहीं है। हम सत्य को हो सकते हैं, सत्य हमारा नहीं होता। और दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं--एक वे, जो चाहते हैं, सत्य हमारा हो, हमारे अनुकूल हो, हमारे ढांचे में ढले; और एक वे, जो कहते हैं, हम सत्य के होने को राजी हैं; सत्य का जो रंग हो, जो ढंग हो, सत्य जहां ले जाए, हम उसके साथ जाने को राजी हैं; हम सत्य की छाया बनने को राजी हैं। ये दूसरे लोग ही केवल सत्य को खोज पाते हैं। पहले तरह के लोग तो हिंदू, मुसलमान, ईसाई, जैन, पारसी, सिक्ख होकर समाप्त हो जाते हैं। ये कभी सत्य को नहीं पा सकते हैं। यह कैसा सनातन धर्म है? शंभू महाराज कहते हैं, मैं अखिल भारतीय सनातन धर्म परिषद का उप-प्रमुख हूं। और गुजरात में रहने के कारण कच्छ के आश्रम का विरोध संगठन की ओर से करना पड़ रहा है। Page 252 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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