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________________ ज्यों था त्यों ठहराया जैनों के पहले और संस्कृतियां हो गईं, और धर्म हो गए। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो में खुदाई जो हुई है, वे सात हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेष हैं। हड़प्पा में एक मूर्ति मिली है-- पद्मासन में बैठे हुए व्यक्ति की। निश्चित ही योग, पतंजलि के योग-सूत्र से ज्यादा पुराना है। महावीर बैठे पद्मासन में, इससे पांच हजार साल पहले कोई बैठ चुका है। हड़प्पा में उसकी मूर्ति मिली है। और हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों ही आर्यों के भारत आने के पहले की सभ्यताएं हैं, आर्यों का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। और आर्यों ने कहीं हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता का उल्लेख नहीं किया है। वेदों में कोई उल्लेख नहीं है। वेद बाद में रचे गए हैं। तो हड़प्पा, मोहनजोदड़ो में कोई धर्म रहा होगा, तब तो पद्मासन लगाए बैठा है कोई आदमी, ध्यान कर रहा है। एक आदमी की आंख बंद किए हुए खड़ी हुई मूर्ति मिली है। कोई आंख बंद करके खड़ा होकर ध्यान कर रहा है। ध्यान भी था, योग भी था, धर्म भी था--हिंदुओं के बहुत पहले, जैनों के बहुत पहले, बुद्धों के बहुत पहले। मगर कहां गया वह धर्म जो हड़प्पा, मोहनजोदड़ो में था? न उसके मानने वाले रहे, न वह धर्म रहा। मगर धर्म किसी के साथ नष्ट नहीं होता। सवारियां बदल जाती हैं, मगर धर्म की यात्रा जारी रहती है। पश्चिम में बहुत-से धर्म रहे। समाप्त हो गए। मगर धर्मों के समाप्त होने से धर्म समाप्त नहीं होता। धर्म सनातन है। धर्म का अर्थ समझो। धर्म का अर्थ है: जगत का स्वभाव; जगत का नियंत्रण करने वाला सूत्र, जगत को जो अपने में बांधे हुए है। जगत को जो धारण किए हुए है--वह धर्म। एस धम्मो सनंतनो! उसी धर्म को हम सनातन कह सकते हैं। उसका हिंदू, ईसाई, मुसलमान से कुछ लेना-देना नहीं; जैन-बौद्ध से कुछ लेना-देना नहीं। ये सब उसी धर्म की छायाएं हैं। जैसे चांद निकलता है, तो नदी में भी प्रतिबिंब बनता है, तालाब में भी, झील में भी, पोखरों में भी, डबरों में भी--जिसकी जितनी हैसियत, वैसा प्रतिबिंब बन जाता है। गंदा डबरा होगा, तो उस में भी प्रतिबिंब बनता है। तुम एक थाली रख दोगे पानी भर कर, तो उसमें भी प्रतिबिंब बनेगा। करोड़ों प्रतिबिंब बनेंगे, चांद एक है। क्या तुम सोचते हो, तुम्हारी थाली टूट जाएगी, पानी बिखर जाएगा, तो चांद टूट जाएगा और बिखर जाएगा? क्या तुम सोचते हो, तुम्हारी तलैया सूख जाएगी, तो चांद सूख जाएगा? क्या तुम सोचते हो, तुम्हारी नदी आंधीतूफान से भर जाएगी और लहरें उठ आएंगी तो प्रतिबिंब छितर-बितर हो जाएगा, मगर चांद थोड़े ही छितर-बितर हो जाएगा। एस धम्मो सनंतनो! वह धर्मसनातन है, जिसकी छायाएं तो बनती हैं, मिटती हैं, मगर जो स्वयं न बनता है न मिटता है, जो सदा से है। सभी बुद्धों ने उसकी तरफ इशारा किया है। सबकी अंगुलियां उसी चांद की तरफ उठी हैं। अंगुलियां अलग-अलग हैं, चांद एक है। अंगुलियां मत पकड़ लेना। Page 251 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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