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________________ ज्यों था त्यों ठहराया पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।। फर्क नहीं है यहां कुछ--तुम्हारे तथाकथित धार्मिकों में और अधार्मिकों में, पापियों में और पुण्यात्माओं में--बहुत फर्क नहीं है। एक जैसे ही लोग हैं। कहां मयखाने का दरवाजा और कहां वाइज। कहां वह धर्मोपदेशक धर्मगुरु...! कहां मयखाने का दरवाजा और कहां वाइज। पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।। सब एक ही तरह के उपद्रव में उलझे हैं। हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले। बहत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।। जिंदगी भर दौड़ कर भी कोई अरमान पूरा नहीं होता। निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन। बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।। पर सभी बेआबरू होकर निकले हैं। यहां से आबरू पाकर तो वही निकलता है, जो अपने को जान कर निकलता है। यह कूचा उन थोड़े से लोगों के लिए सार्थक हो जाता है, जो खुद को पहचान लेते हैं। अमृत प्रिया, अपने को पहचान। समय मत गंवाओ। मैं तुम से कहता हूं कि जीवन महाआनंद है, महाउत्सव है। जीवन शाश्वत गीत है, जिसका न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत। मगर तुम्हारा जीवन तो बीज है अभी। इसे ध्यान की भूमि दो। इस पर प्रेम का पानी बरसाओ। इस पर श्रम भी किरणें पड़ने दो। जागरूक होकर इसकी रक्षा करो। और देर नहीं लगेगी, जल्दी ही अंकुर निकलेंगे। जल्दी ही वसंत आ जाएगा, मधुमास आ जाएगा। एक क्षण में भी यह बात हो सकती है, त्वरा चाहिए, सघन अभीप्सा चाहिए। अभीप्सा और आकांक्षा का भेद खयाल में रखना। आकांक्षा होती है बाहर की; अभीप्सा होती है भीतर की। जो व्यक्ति समग्ररूपेण स्वयं को खोजने में लग जाए; रत्ती भी बचा कर न रखे; आधा-आधा नहीं--पूरा पूरा लग जाए; निन्यानबे प्रतिशत भी नहीं, सौ प्रतिशत लग जाए--तो एक क्षण में क्रांति घट सकती है। एक क्षण में तुम्हारे जीवन में सुगंध आ सकती है; सूरज निकल सकता है। यह जो अंधेरी रात चल रही है जन्मों-जन्मों से, इसकी सुबह हो सकती है। नहीं तो यह उदासी चलती रहेगी--चलती रहेगी--चलती रहेगी। न किसी की आंख का नूर हूं, न किसी के दिल का करार हूं। जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्ते-गुबार हूं। मेरा रंग रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिछुड़ गया। जो चमन खिजां से उजड़ गया मैं उसी की फस्ले-बहार हं।। पए-फातेहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों। कोई आ के शम्मा जलाए क्यों, मैं वो बेकसी का मजार हं।। Page 235 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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