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________________ ज्यों था त्यों ठहराया अभी परसों एक पत्र लक्ष्मी ले कर आई। किसी सज्जन ने उत्तर प्रदेश से पत्र लिखा है कि आपसे मेरी विनती है कि आप कृपा कर के चंदूलाल के नाम से लतीफे कहना बंद कर दें। बिलकुल बंद कर दें। क्योंकि मेरे बाप का नाम चंदलाल है। आप कोई दूसरा नाम चुन लें। आपका कुछ न बिगड़ेगा। आप कोई दूसरा नाम चुन लें। मगर यह चंदूलाल की वजह से मेरी मुसीबत हुई जा रही है। क्योंकि मैं आपका प्रेमी हूं और टेप सुनने जाता हूं। और जब भी आप चंदूलाल का नाम लेते हैं, सब लोग मेरी तरफ देख कर हंसते हैं कि यह चंदूलाल का बेटा! और मेरे बाप आप पर बहुत नाराज हैं कि यह आदमी क्यों मेरे पीछे पड़ा है! अब मैंने कहा कि यह बड़ी मुश्किल हो गई। मैं कोई दूसरा नाम चुनूंगा, वह किसी का बाप होगा, किसी का बेटा होगा। और चंदूलाल कोई एक है? इसका चंदूलाल तो मुझे पता ही नहीं था कि ये चंदूलाल कहीं उत्तर प्रदेश में रहते हैं! मैं तो यूं ही चुन लिया था चंदूलाल! अरे, इस देश में कम से कम लाखों चंदलाल होंगे। मगर इस लड़के का नाम ही मुझे भूला गया है, क्योंकि हम उसे चंदूलाल ही कहते थे। उसका नाम कुछ और ही था। मगर उसको सभी लोग चंदूलाल के नाम से जानते थे। शिक्षक भी उसको बुलाते, तो कहते, चंदूलाल! वह नाराज होता था। झुंझलाता था। परेशान होता था। मगर अभी मुझे मिला, तो कहने लगा कि कहा, क्या दिन थे वे! मैंने कहा, तू तो कम से कम मत कह! तू तो याद कर कि तेरी क्या गति थी। मैंने कहा, उठा टोपी! तुझे याद दिलाऊं कि फिर तुझे भूली-बिसरी यादें आएं, तो शायद तुझे कुछ खयाल में पड़ें! वह कहने लगा कि यह बात तो ठीक है। अगर लौट कर सोचूं, तो मुझे बहुत सताया गया। मगर अब वे बातें तो भूल गई। अब तो सब अच्छी-अच्छी बातें याद रहीं। जब तुम पीछे लौट कर देखोगे, तो जो सुखद क्षण थे, वे लंबे मालूम पड़ेंगे, क्योंकि वे तुमने चुन लिए। और जो दुखद थे, वे छोटे मालूम पड़ेंगे, क्योंकि वे तुमने चुने नहीं हैं। बस, उनकी तो हल्की लकीर रह गई मजबूरी में। वह लकीर भी तुम मिटा देना चाहते हो। इसलिए बूढा आदमी सोचता है--जवानी अच्छी थी। जवान सोचता है--बचपन अच्छा था। और जो मर गए हैं, वे शायद सोचते होंगे कि बुढ़ापा अच्छा था--कब्र में लेटे-लेटे--कि अहा, क्या दिन थे! अमरीका का एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नब्बे साल का हो कर मरा। जब वह नब्बे साल का था, तो अपने बेटे के साथ बगीचे घूमने गया था। बेटे की उम्र थी पैंसठ साल। यूं बात चल रही थी दोनों में। एक सुंदर स्त्री पास से गुजरी। स्वभावतः बेटे की नजर उस पर पड़ी, बाप की भी नजर पड़ी। स्त्री बहुत सुंदर थी, नजर बचाना मुश्किल था। तो बेटे ने अपने बाप से कहा कि पिताजी, आपका मन होता होगा कि आप भी जवान होते...! तो बाप ने कहा कि यह तो मन नहीं होता कि जवान होता। लेकिन इतना कम से कम मन होता है कि कम से कम पैंसठ साल का होता ही! कम से कम तेरी उम्र का तो होता ही! अब पैंसठ साल भी यूं बुढ़ापा है। मगर जो नब्बे साल का है, उसके लिए तो पैंसठ साल का होना भी जवानी है। Page 20 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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