SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया खाली हो जाता था। आसपास दस-पंद्रह लोग एकदम हट जाते थे। क्योंकि वे इस तरह तलवार चलाते थे! मुझसे कई दफा लोगों ने कहा भी कि यह किस तरह का ध्यान है! यह तो आदमी किसी को मार ही डालेगा! क्या करें--वे भी सरदार थे। अब तो संत हो गए हैं। सरदार वगैरह सब खो गया। नहीं तो कृपाण वे भी चला सकते थे! मैं बलसाड़ में एक शिविर ले रहा था। कोई पांच सौ लोग शिविर में सम्मिलित थे। और एक सरदार जी भी सम्मिलित थे। जब सक्रिय ध्यान मैंने करवाया और मैंने कहा कि अब जो भी दिल में हो--निकाल डालो! तो उस सरदार ने इस तरह से धूंसेबाजी की कि पांच सौ के पांच सौ ध्यानी छंट कर खड़े हो गए अलग। सरदार अकेला! पांच सौ को हटा दिया! मैदान खाली! क्योंकि कई को चोटें मार दी! वह घुसे चलाए! जब ध्यान खतम हुआ, तो सरदार ने देखा कि बात क्या हुई! अकेले ही रह गए! सब लोग खड़े हो कर देख रहे हैं दूर से कि अब करना क्या! तब उसे शर्म लगी। मेरे पैरों पर गिर पड़ा और कहा, मुझे माफ करें। आपने कहा कि अब दिल खोल कर निकाल दो, तो जो भरा था, मैंने निकाल दिया। अब किसी को चोट वगैरह लगी हो, तो मुझे माफ करना, क्योंकि मैं किसी को मारना नहीं चाहता था। मगर जो दिल में भरा था...। जब आपने कहा--निकाल ही दो--और समग्रता से निकाल दो, तो फिर मैंने कहा--अब क्या कंजूसी करना! यह पहली दफा तो मौका आया। निकाल दो! अजयकृष्ण लखनपाल, द्वंद्व कहीं और है; वह अहंकार और तुम्हारी चेतना के बीच है। वह अतीत और वर्तमान के बीच है। अब कम्मू बाबा तुम्हारे लिए सिर्फ अतीत के प्रतीक रह गए हैं। मैं वर्तमान हूं। और मैं तुमसे यह कहता हूं कि सदा वर्तमान के प्रति निष्ठा रखना, क्योंकि वर्तमान ही परमात्मा है। अतीत हो गया। सांप तो निकल गया, अब तो सिर्फ रेत पर निशान रह गए! पूजते रहो चाहे तो। तुम्हारी मर्जी--फूल चढ़ाते रहो। लेकिन जो जा चुका-जा चुका। अब तुम कितना ही कम्मू बाबा का कलाम पढ़ते रहो, कुछ भी न होगा। कलाम में कुछ नहीं होता; जादू होता है सदगुरु में। इसलिए अकसर यह हुआ है--अकसर क्या, हमेशा यह हुआ है कि जो सूत्र महावीर की मौजूदगी में लोगों के जीवन में दीए जला दिए, वही सूत्र पच्चीस सौ साल में किसी की जिंदगी में दीए नहीं जला सके। वही सूत्र! वही के वही सूत्र! जादू था महावीर में, तो जिस सूत्र को कह दिया, उसी में जादू आ गया। वह जादू था महावीर में। वह महावीर के भीतर था जादू। उस जादू में डूब कर जो सूत्र आया, उसमें ही थोड़ा जादू लिपटा आ गया। वह शून्य था भीतर; वह समाधि थी भीतर--उसमें डुबकी मारकर जो भी शब्द आया, वह भी उसी माधुरी से भर कर आया। थोड़ा अमृत उसमें भी बह आया। थोड़ी बूंदा-बांदी उसमें भी हो गई। जिस पर पड़ गईं वे बूंदें, वह जीवित हो उठा। लेकिन अब पच्चीस सौ साल से तोतों की तरह लोग उसी को दोहरा रहे हैं। अब उसमें कुछ भी नहीं है। बात कुछ भी नहीं है। तुमने इस पर खयाल किया कि दवा कम काम करती है, चिकित्सक ज्यादा काम करता है। दवा में जादू नहीं होता, जादू चिकित्सक में होता है। और अगर कभी ठीक चिकित्सक Page 196 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy