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________________ ज्यों था त्यों ठहराया हम सदियों से यह कहते रहे हैं। कन्यादान करते हैं। जैसे चीज हो कोई। कन्यादान! स्त्री-धन कहते हैं हम--कि स्त्री तो धन है। हमने स्त्रियों का कितना अपमान किया है! चौबीस वर्ष की लड़की--कब इसको मुक्ति दोगे कि अपने ढंग से सोच सके? मगर उसको घसीट लिया। संत ने कहा भी कि उसको अगर संन्यास लेना है, तो लेने दें। और अभी तो आप ही कहते थे कि जाने का मन नहीं होता। और वह भी यही कह रही है कि मेरा भी जाने का मन नहीं है अब! आपको जाना हो, तो जाएं। मैं यहां रुक जाना चाहती हूं। आगबबूला हो गए। फिर उन्होंने देर नहीं की। पूना उन्हें खतरनाक मालूम पड़ा, कि कहीं उनकी चीज--उनकी लड़की कहीं हाथ से न छूट जाए! ठीक यहां से जाकर होटल में से सामान निकाल कर वे भाग ही खड़े हुए! संत जब तक होटल में पहुंचा, तो वे अपना सामान टैक्सी में रख रहे थे! संत ने कहा कि इतनी जल्दी क्या है! उन्होंने कहा, बस, अब बात ही मत करो। मैं एक मिनट यहां नहीं रुक सकता। यह तो खतरनाक मामला है! तत्क्षण अमृतसर चले गए, जहां दुख ही दुख है--उनके ही हिसाब से! और वह लड़की भी नहीं जाना चाहती, और वे भी नहीं जाना चाहते। लेकिन जब लड़की ने कहा कि मैं संन्यास लेना चाहती हूं, तब उनके अहंकार को चोट लग गई। और जब लड़की ने जिद्द की कि मैं यहीं रुक जाना चाहती हूं, अब आपके साथ मुझे जाना भी नहीं है, तब तो भारी आघात हो गया। यूं खुद भी यहां रहना चाहते थे! और पछताएंगे अमृतसर जा कर कि यह मैंने क्या किया! दुखी होंगे। सरल आदमी थे। मगर कितने ही सरल हों, हैं तो सरदार ही! तो सरलता को भूल गए। एक क्षण में सरदार वापस आ गया! अतीत यूं हमले करता है। इस तरह आता है अंधड़त्तूफान की भांति कि तुम्हें उड़ा ले जाता है। लड़की को जबर्दस्ती घसीट कर ले गए। अब संत को डर है कि वे शायद श्रीनगर न गए हों! बजाय अमृतसर जाने के। क्योंकि श्रीनगर में उन्होंने लड़का खोज रखा है। वे शायद यहां से सीधे श्रीनगर जाएंगे और तत्क्षण लड़की की शादी कर देंगे, ताकि उनकी झंझट मिट जाए-- ताकि चीज किसी और की हो जाए! फिर वे जानें! और मुझे भी लगता है, वे यही करेंगे। और जीवन भर लड़की को दुखी करेंगे और खुद दुखी रहेंगे। और अब यहां आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकेंगे। क्या मुंह ले कर आएंगे! यह जो द व्यवहार किया उन्होंने अपनी बेटी के साथ! और संत से कहा कि अगर अपनी बहन को यहां लाना हो, तो अमृतसर आना। वहां तुम्हें मजा चखाऊंगा! सरदार हैं! और तलवार बेचने का धंधा करते हैं! सो कृपाण निकल लेंगे वे, अगर संत गए वहां। ऐसे संत भी अगर पुराने संत होते, तो यहीं कृपाण निकल जाती! संत भी जब पहले-पहले यहां आए थे, तो ध्यान कम करते थे, कृपाण ज्यादा चलाते थे! ध्यान में! एकदम तलवार चला देते थे! जब संत पहले-पहले ध्यान करते थे, तो वहां स्थान Page 195 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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