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________________ ज्यों था त्यों ठहराया तुझसे कहती हूं--दरवाजा खुला है। और तू नाहक चिल्ला रहा है कि दरवाजा खोलो। दरवाजा खोलो! तू अपनी धुन में मस्त है। दरवाजा खोलो--दरवाजा खोलो--इसी में लगा है। दरवाजा खुला है! आंख खोल। बकवास बंद कर। दरवाजा कभी बंद नहीं था। एक सम्राट का वजीर मर गया। उसे एक वजीर की जरूरत थी। कैसे वजीर चुना जाए! सारे देश में खोजबीन की गई। तीन बुद्धिमान व्यक्ति राजधानी लाए गए। अब राजा को चुनना था इन तीन में से कोई एक। एक अलमस्त फकीर से उसने पूछा कि, आप ही कोई रास्ता बताओ। कैसे चुनूं? तीनों महाबुद्धिमान हैं। बड़े मेधावी हैं। तय करना मुश्किल है कि कौन किससे ज्यादा है! एक से एक बढ़ कर हैं सब। मैं बड़ी उलझन में पड़ गया हूं--किसको चुनूं, किसको छोडूं? तीनों चुनने जैसे लगते हैं। लेकिन आदमी तो एक ही चाहिए! फकीर ने उसे एक तरकीब बताई। और वह तरकीब काम आ गई। उन तीनों को एक कमरे में बंद किया गया और उन तीनों से कहा गया...। सम्राट खुद गया कमरे में। उसने कहा कि मैं दरवाजा बंद कर के बाहर जा रहा हूं। इस दरवाजे पर ताला नहीं है। देखो, ताले की जगह गणित के अंक लिखे हुए हैं। यह एक पहेली है। इस पहेली को जो हल कर लेगा, वह इस दरवाजे को खोलने में समर्थ हो जाएगा। सो तुम यह पहेली हल कर लोगे, तो जो पहले निकल आएगा पहेली हल कर के, वही वजीर हो जाएगा। तीनों को छोड़ कर दरवाजा बंद करके सम्राट बाहर बैठ गया। दो तो एकदम से हिसाब-किताब लगाने में लग गए। आंकड़े लिखे उन्होंने और बड़े गणित के काम में लग गए। और एक कोने में जाकर आंख बंद कर के बैठ गया। उन दोनों ने उसकी तरफ देखा कि यह पागल क्या कर रहा है! अरे, यह समय आंख बंद कर के बैठने का है। हल कैसे होगी पहेली? पर उन्होंने सोचा, अच्छा ही है कि एक प्रतियोगी खतम हुआ। वह तो अपनी धुन में मस्त...। वह पहेली ऐसी थी कि हल न हो। वह पहेली तो हल होने वाली थी नहीं। वे लगे रहे--पहेली में उलझते गए, उलझते गए! जाल बड़ा होता गया। और वह आदमी बैठा रहा चुपचाप--बैठा रहा। एकदम से उठा। उन्हें पता ही नहीं चला कि वह आदमी कब बाहर निकल गया। वह दरवाजा बंद था ही नहीं! वह सिर्फ अटका था। वह आदमी शांत बैठा रहा। शांत बैठ रहा। उसने क्या किया? वह तो सिर्फ मौन बैठा। उसने सारे विचार अलग कर दिए। उसने तो ध्यान किया। और ध्यान की एक अदभुत खूबी है कि दृष्टि निर्मल हो जाती है। दृष्टि पारदर्शी हो जाती है। अंतर्दृष्टि खुल जाती है। अचानक उसे भीतर से बोध हुआ कि दरवाजा अटका है। पहेली सब शरारत है। पहेली उलझाने का ढंग है। वह उठा। उसने कहा कि सबसे पहले तो यही देख लेना चाहिए कि दरवाजा बंद भी है या नहीं! फिर पहेली हल करने में लगना। Page 186 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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