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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मैं यहां खोज छोड़ना सिखाता हूं बैठ रहो मौन हो जाओ। शब्दों में मत तलाशी शास्त्रों में मत तलाशो। वहां शब्द ही पाओगे। और शब्द सब थोथे हैं। अपने शून्य में विराजो | और उसी शून्य में अविर्भाव होगा । |-- -- और जिसे कहीं नहीं पाया, बैठा है। अतिथि भी क्यों कहो चले हो । जो खोजने चला है, उसे ही खोजना है। वो दिल नसीब हुआ, जिसको दाग भी न मिला । मिला तो गमकदा, जिसमें चिराग भी न मिला। गई थी कहके, मैं लाती हूं जुल्फे यार की बू । फिरी तो बादे सबा का दिमाग भी न मिला। असीर करके हमें क्यों रिहा किया सैयाद । वो हम सफीर भी छूटे, वो बाग भी न मिला || भर आए महफिले-साकी में क्यों न आंख अपनी | वो बेनसीब हैं, खाली आयाम भी न मिला । । चिराग लेकर, इरादा था, बख्त ढूंढेंगे। शबे-फिराक थी, कोई चिराग भी न मिला।। खबर को यार की भेजा था, गुम हुआ ऐसा हवासे रफ्ता का अब तक सुराग भी न मिला।। जलाल बागे जहां में वो अंदलीब हैं हम | उसे अपने घर में पाओगे वह पहले से ही तुम्हारा अतिथि हुआ अतिथेय है। वही तुम्हारा मालिक है, जिसकी तुम खोज में चमन को फूल मिले, हमको दाग भी न मिला । । भटकोगे बाहर, तो यही दशा होगी। भर आए महफिले साकी में क्यों न आंख अपनी वो बेनसीब हैं, खाली अयाग भी न मिला। खाली प्याला भी नहीं मिलेगा। शराब से भरा हुआ प्याला तो बहुत दूर खाली प्याला भी न मिलेगा। चिराग ले के, इरादा था, बख्त ढूंढेंगे। शबे-फिराक थी, कोई चिराग भी न मिला। यह बात कुछ चिराग ले कर ढूंढने की नहीं है पुरुषोत्तम ! ढूंढने में ही लोग व्यस्त हैं! ढूंढने में ही लोग परेशान हैं। ढूंढने में ही लोग चूक रहे हैं। राबिया एक सूफी फकीर स्त्री निकलती थी रास्ते से जिस रास्ते से रोज निकलती थी, वहां एक दूसरा फकीर हसन मसजिद के समाने हमेशा बैठा रहता था - आकाश की तरफ हाथ उठाए, झोली फैलाए। चिल्लाता था, हे प्रभु, द्वार खोलो ! राबिया ने कई बार इस हसन को यूं मसजिद के सामने प्रार्थना करते देखा था। एक दिन उससे न रहा गया। बड़ी हिम्मत की औरत थी। जाकर हसन को झकझोर दिया और कहा कि चुप रह। बंद कर यह बकवास । मैं Page 185 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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