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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मकसद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है।। वां दिल में, कि सदमे दो, यां जी में, कि सब सह लो। उनका भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है।। हर जर्रा चमकता है, अनवारे-इलाही से। हर सांस ये कहती है, हम हैं तो खुदा भी है।। सूरज में लगे धब्बा, फितरत के करिश्मे हैं। बुत हमको कहें काफिर, अल्लाह की मर्जी है।। हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी-सी जो पी ली है। डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।। पिंकी ने कुछ बुरा तो नहीं किया। कोई डाका नहीं डाला। कोई चोरी नहीं की। थोड़ा अपना पात्र बढ़ाया, कि मैं भी पीऊं; कि मैं कैसे डूब जाऊं। उसके प्रश्न में उसने अपने पात्र को ही बढ़ाया था कि थोड़ा-सा मैं भी पी लूं। लेकिन मां का भी कोई कसूर नहीं। नात्तजुर्बा-कारी से, वाइज की ये बातें हैं। इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है? हम तो वही कह सकते हैं, जो हमने जाना है, जो हमने पहचाना है। संभव है इस बहाने, पिंकी के बहाने, उसको भी समझ आए। समझ तो सबको आ सकती है। समझ सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। मगर कोई जिद्द ही बांध कर बैठ जाए, तो बात अलग। अगर कोई अंधे होने की कसम ही खा ले, तो बात अलग। कोई अगर आंख बंद करने के लिए तय ही कर लिया हो, तो बात अलग। अन्यथा यहां तो बातें सीधी-साफ हैं। किसी से मेरी मंजिल का पता पाया नहीं जाता। जहां मैं हूं, फरिश्तों से वहां आया नहीं जाता। मेरे टूटे हुए पाएतलब का, मुझ पे एहसां है। तुम्हारे दर से उठ के अब कहीं जाया नहीं जाता।। चमन तुमसे इबारत हैं, बहारें तुमसे जिंदा हैं। तुम्हारे सामने फूलों से मुझाया नहीं जाता।। हर इक दागेतमन्ना को कलेजे से लगाता हूं। कि घर आई हुई दौलत को ठुकराया नहीं जाता।। मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल महसूस होते हैं। ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता।। यह तो प्रेम का एक अलग ही जगत है। संन्यास जीवन को जीने की एक अलग ही शैली है। मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल महसूस होते हैं। ये वो नग्मा है जो हर साज पर गाया नहीं जाता।। तैयारी चाहिए साज की। साज को पहले बिठालना पड़ता है। तार कसने होते हैं। और जिंदगी सबके साजों को बिगाड़ जाती है। जिंदगी सब के साजों को गलत पाठ पढ़ा जाती है। या तो Page 169 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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