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________________ ज्यों था त्यों ठहराया रात इतनी क्रुद्ध होती। इतना शोरगुल मचा देती--यही चीख-पुकार--कि सारा घर जाग जाता। पिता आ जाते। परिवार आ जाता। जाना मेरा मुश्किल हो जाता। क्षमा मांगता हूं--कि तुझसे बिना पूछे गया। लेकिन अब शांत हो और मैं तेरे लिए कुछ भेंट लाया हूं, वह स्वीकार कर। अगर घर में ही रह जाता, तो यह भेंट कभी ला नहीं सकता था। यह सत्य लाया हूं तुझे देने। यह आनंद लाया हूं तुझे देने। झोली फैला और मैं जो देने आया हूं, वह ले। खाली हाथ नहीं आया हूं। और अब मैं जो लाया हूं, अगर तू ले सकी, तो तू समझेगी कि मेरा जाना योग्य था। और यशोधरा ने बाद में क्षमा मांगी। जब समझी--संन्यस्त हो गई। और उसने क्षमा मांगी कि मुझे माफ कर दो। मैंने अपने मोह में, अपने अज्ञान में जो बातें कहीं--एक बुद्धपुरुष से ऐसी बातें कहीं--मुझे क्षमा कर दो! भूल जाओ। विस्मरण कर दो। बुद्ध ने कहा, मैंने उनको लिया ही नहीं। मैं तो तुझे अवसर दिया था, ताकि तेरा उभार निकल जाए, उफान निकल जाए, तो तू शांत हो सके। आया ही इसलिए, नहीं तो आता ही नहीं--कि जिनको मैंने चाहा है, उनको जब आनंद मुझे मिला है, तो बांटूं। पहले उन को बांटूं, फिर किसी और को बांटूं। तेरी सुध भूला नहीं हूं। तेरा अधिकार पहला है। लेकिन अगर तू कहती है कि पूछ कर जाना था, तो मैं कभी जा ही नहीं सकता था। यह शाश्वत कथा है। यह सदा की बात है। पिंकी की मां ने जो किया, वह कोई भी मां करती। हालांकि किसी भी मां को करना नहीं चाहिए। मूर्छा में, बेहोशी में! लेकिन संत, चिंता न लो। जो भी होता है, अच्छा होता है। इससे पिंकी को भी समझ आएगी। पिंकी की मां को भी समझ में आएगी। तुम्हारे पिता को भी कुछ बात समझ में आएगी। कुछ इसमें चिंता लेने की बात नहीं है। यूं ही तो समझ आती है। कंटकाकीर्ण मार्ग है, इसी से चल कर तो मंजिल करीब आती है। हंगामा तो मचेगा...! हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी-सी जो पी ली है। डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।। नात्तजुर्बा-कारी से, वाइज की ये बातें हैं। इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है? पिंकी की मां भी क्या करे! उसने कभी यह रंग पीया नहीं। उसने कभी यह ढंग जाना नहीं। जो जाना है, जो भाषा उसने सीखी है--गृह की, परिवार की, गृहस्थी की--वही तो अपने बच्चों को सिखाएगी। और तो उपाय भी नहीं हैं! हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी-सी जो पी ली है। डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है।। नात्तजुर्बा-कारी से, वाइज की ये बातें हैं। इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है? उस मय से नहीं मतलब, दिल जिससे है बैगाना। Page 168 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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