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________________ ज्यों था त्यों ठहराया और किसी बूढे को बुद्ध के महलों में जाने की आज्ञा न थी। यहां तक कि कोई सूखा हुआ पत्ता बुद्ध के बगीचे में नहीं टिकने दिया जाता था। सूखे पत्ते को देख कर शायद उन्हें याद आ जाए कि कभी हमें भी तो नहीं सूख जाना पड़ेगा। आज हरे हैं, कल कहीं सूख कर वृक्ष से गिर तो न जाएंगे! कुम्हलाए हुए फूल रात में अलग कर देते थे। बुद्ध के बगीचे में माली रात भर काम करते थे। कुम्हलाए फूल, सूखे पत्ते, पीले पड़ गए पत्ते--सब अलग कर दिए जाते थे। बुद्ध को ऐसे धोखे में रखा गया। लेकिन कब तक धोखे में रखोगे! जिंदगी से कैसे किसी को छिपाया जा सकता है! एक महोत्सव में--युवक महोत्सव में बुद्ध भाग लेने जा रहे थे--उसका उदघाटन करने। राजकुमार ही उसका उदघाटन करता था। रास्ते पर इंडियां पीट दी गई थीं कि कोई बूढा न निकले, कोई बीमार न निकले, कोई मुर्दे की लाश न गुजरे, कोई संन्यासी न निकले। मगर दुनिया बड़ी है। किसी बहरे ने सुना ही नहीं कि कुंडी पिटी। किसी बीमार को पता ही न चला कि इंडी पिटी। बड़ी राजधानी थी। और जब बुद्ध का रथ जा रहा था राजधानी में से, तो उन्होंने देखा एक आदमी को: कमर झुक गई। रुग्ण! खांस रहा, खखार रहा! पूछा कि क्या हो गया इसको? सारथी ने कहा कि मुझे आज्ञा नहीं है कि मैं आपको इस तरह की बातों के संबंध में कहूं! बुद्ध ने कहा, मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि बोलो। क्या हो गया इसे? बुद्ध को इनकार भी नहीं किया जा सकता। राजकुमार है। तो उसने कहा, मजबूरी है। लेकिन आपके पिता की आज्ञा नहीं है। बुद्ध ने कहा, जब मैं तुमसे कहता हूं, जवाब दो अन्यथा नौकरी से तुम अलग किए जाते हो! उस सारथी ने कहा, मालिक नाराज न हों। यह आदमी बीमार है। इसको क्षय रोग हो गया है। यह तपेदिक से बीमार है। यह खांस रहा है, खखार रहा है। बुद्ध ने कहा, क्या मैं भी कभी बीमार हो सकता हूँ? इसको कहते हैं प्रतिभा। इसको कहते हैं बुद्धिमत्ता। इसको कहते हैं प्रखर तेजस्विता--मेधा! उस आदमी का प्रश्न तत्क्षण अपने पर लागू हो गया। क्या मैं कभी बीमार हो सकता हूं? उस सारथी ने कहा कि मैं क्या कहं आपसे! लेकिन देह है, तो बीमारी है। देह तो बीमारियों का घर है। इसमें सब बीमारियां छिपी हैं। आज नहीं कल...अभी आप जवान हैं। अभी सब स्वस्थ है। सब सुंदर है। मगर कब टूट जाएगा स्वास्थ्य, कहा नहीं जा सकता। टूट ही जाता है। मगर खयाल रखें, अपने पिता को मत कहना कि मैंने ये बातें आपसे कहीं। नहीं तो मेरा अस्तित्व खतरे में है। बुद्ध ने कहा, तुम चिंता मत करो। और तभी एक बूढा आदमी गुजरा; बहुत जराजीर्ण। और बुद्ध ने पूछा, इसे क्या हो गया? इसे कौन-सी बीमारी है? Page 155 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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