SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया हर मां-बाप बच्चों को रोकते हैं--कहीं संन्यस्त न हो जाएं! बड़ी हैरानी की दुनिया है। और मजा यह कि अगर किसी और का बेटा संन्यासी हो जाए, तो यही मां-बाप उसके चरण छूने जाते हैं! इनका खुद का बेटा संन्यासी होने लगे, तो इनको अड़चन आती है। अड़चन इसलिए आती है कि इनके न्यस्त स्वार्थ को धक्का लगता है। अड़चन इसलिए आती है कि बेटा हमसे आगे जा रहा है! इससे इंकार को भी पीड़ा होती है। हम जो न कर पाए, वह बेटा कर रहा है, कि बेटी कर रही है! और फिर बुद्ध के पिता ने जो बड़ा विस्तार कर रखा था धन का, साम्राज्य का, उसका क्या होगा! जीवन उसी में गंवाया था। बड़ी आशा थी इस बेटे की कि बेटा मिल जाएगा, तो सम्हालने वाला कोई होगा। हम तो न रहेंगे, लेकिन अपना कोई खून का हिस्सा सम्हालेगा! क्या-क्या मोह हैं दुनिया में! हम न होंगे तो कम से कम हमारा बेटा सम्हालेगा। खुद के बेटे नहीं होते, लोग दूसरे के बेटे गोद ले लेते हैं और भ्रांतियां बना लेते हैं कि अपना है। कोई अपना सम्हालेगा, तो भी भरोसा है कि चलो, हमारा श्रम व्यर्थ नहीं गया। श्रम तो व्यर्थ ही गया। जब तुम ही चले गए, तो तुम्हारे श्रम का क्या मूल्य है! बुद्ध के पिता बड़े चिंतित हए। पूछने लगे कि कोई रास्ता बताओ--कैसे इसको रोकें? तो उन ज्योतिषियों ने कहा, अगर इसे रोकना हो, तो चार चीजों का पता मत चलने देना। बीमारी होती है--यह पता मत चले देना। क्योंकि बीमारी में इसे दुख होगा। दुख होगा, तो फिर बचना मुश्किल होगा। बुढ़ापा आता है, यह पता मत चलने देना, क्योंकि बुढापे का अगर इसको खयाल आ जाएगा, तो मौत ज्यादा दूर नहीं है फिर। और मौत होती है--यह इसे पता मत चलने देना। और चौथी बात कि संन्यास की भी संभावना है--यह इसे पता मत चलने देना। बस, ये चार बातों से बचाए रखना। और इसे पिलाओ शराब और रंगरेलियां मनाने दो। सम्राट हो तुम, सुंदरतम स्त्रियां इकट्ठी कर दो, उन्हीं में भूला रहे, भटका रहे। संगीत चले। नाच चले। शराब चले। दौर पर दौर चलें। इसको बेहोश रखो। अगर इसे बेहोश रखने में समर्थ हो गए, तो यह चक्रवर्ती सम्राट हो जाएगा। सम्राट ने कहा, फिर ठीक है। उसने बुद्ध के लिए अलग-अलग ऋतुओं के लिए अलग-अलग महल बनवाए। गर्मी के लिए अलग महल। ऐसे स्थान में, ऐसे मौसम में, ऐसे वातावरण में, जहां सब ठंडा था, शीतल था। उसे गर्मी का पता न चले। सर्दी में और जगह--जहां सब गर्म था, उसे सर्दी का पता न चले। वर्षा में ऐसी जगह जहां थोड़ी बूंदाबांदी हो। वर्षा का मजा भी हो, लेकिन वर्षा की पीड़ा न हो। सम्राट ने सारी सुंदर स्त्रियां, जितनी सुंदर युवतियां राज्य में मिल सकती थीं, सब को उठा लिया। वह उसके हाथ की बात थी। बुद्ध को सिर्फ लड़कियों से घेर दिया। खिलौने ही खिलौने दे दिए। और सारी सुविधाएं जुटा दीं। श्रेष्ठतम चिकित्सक बुद्ध के पीछे लगा दिए कि बीमारी आने के पहले ही इलाज करें। बीमारी आए--फिर इलाज नहीं। बीमारी आने के पहले इलाज। बुद्ध को पता ही न चले कि बीमारी आने वाली थी। Page 154 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy