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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मुसलमान कहते हैं, आखिरी पैगंबर हो चुके--मोहम्मद। अब कोई पैगंबर नहीं होगा। सिक्ख कहते हैं, दस गुरु हो चुके, अब ग्यारहवां गुरु नहीं होगा। जैन कहते हैं, चौबीस तीर्थंकर हो चुके, अब पच्चीसवां तीर्थंकर नहीं होगा। यह आदमी को तोड़ देने की बात है। आदमी और जागृत पुरुषों के बीच इतना फासला मत खड़ा करो। मेरा पूरा जोर इस बात पर है कि मैं तुम जैसा हूं। मेरी कोई विशिष्टता नहीं। न कोई अवतार हूं। न कोई तीर्थंकर हूं। न कोई ईश्वर-पुत्र हूं। तुम जैसा हूं। और मेरे जीवन में जो घटा है, वह तुम्हारे जीवन में घट सकता है। कल मैं तुम जैसा था, आज तुम मेरे जैसे हो सकते हो। जरा भी भेद नहीं है। इतना ही भेद है कि मैं जाग कर बैठ गया हूं--और तुम अभी सो रहे हो। और तुम्हें मैं हिलाने की कोशिश कर रहा हूं कि जागो। हालांकि किसी को भी सोते से जगाने में अड़चन तो होती है। जागने वाला तो जग आता है इसलिए--कि कब तक सपनों में खोए रहोगे--व्यर्थ सपनों में! जागो। सुबह हो गई। पक्षी गीत गाने लगे। सूरज उगने लगा। आनंद बरस रहा है। अमृत की झड़ी लगी है। और तुम सो रहे हो! मगर सोने वाला अपने सपनों में खोया है। हो सकता है, सोने के सिक्के गिन रहा हो! नोटों की गड्डियां बरस रही हों। बड़ी से बड़ी कुर्सी पर चढ़ा बैठा हो। राष्ट्रपति हो गया हो। प्रधानमंत्री हो गया हो। और तुम उसको जगा रहे हो। उसका सपना टूट जाए--तो नाराज तो होगा ही--कि अभी कुर्सी पर बैठ भी नहीं पाया था कि तुमने हिला दिया! कुर्सी भी खो गई! मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सपना देखा कि एक फरिश्ता उससे कह रहा है कि मांग, कुछ मांगना है! आदमी की मूढता तो देखो! मगर तुम्हारे ही जैसा आदमी है मुल्ला नसरुद्दीन! उसने कहा, एक सौ का नोट मिल जाए! आदमी मांगे भी तो क्या मांगे! परमात्मा भी मिल जाए--तुम सोचो--तो क्या मांगोगे? क्या मांगोगे अगर--कभी विचार करो कि परमात्मा मिल ही जाए...! तुम सुबह-सुबह घूमने निकले। परमात्मा मिल गया रास्ते पर और पूछने लगा कि क्या मांगते हो? तो क्या करोगे? नोट की गिड्डियां मांगोगे! कहोगे--इलेक्शन में इस बार जीतना हो जाए; कि फलानी स्त्री से मेरा प्रेम हो गया, वह मुझे मिल जाए; कि बेटा नहीं हो रहा--बेटा हो जाए। कुछ इसी तरह की फिजूल की बातें मांगोगे। मांगोगे क्या? ये ही सब बातें तुम्हारे भीतर उतरेंगी--कि लाटरी खुल जाए! कुछ न कुछ इस तरह की बातें--कि घुड़दौड़ हो रही है पूना में, मेरा घोड़ा जीत जाए! अब तुम देखते हो कि घोड़े भी इतने नालायक नहीं हैं, जितना आदमी नालायक है! घोड़े आदमियों की दौड़ नहीं करवाते! और आदमी कितने ही दौड़ें, कोई घोड़ा देखने नहीं आएगा। मैं तुमसे पक्का कहता हूं--कोई घोड़ा देखने नहीं आएगा। कहेंगे, ये बद्ध दौड़ रहे हैं--दौड़ने दो। इसमें अपने को देखना क्या है! मगर घोड़े दौड़ते हैं और आदमियों की भीड़ इकट्ठी है! अभी सारा बंबई पूना में है। जिनकी भी जेबें जरा गर्म हैं, वे सब पूना में हैं। घुड़दौड़ हो रही है। घोड़े दौड़ रहे हैं! तुम्हें क्या पड़ी है! मगर आदमी अजीब है! गधे भी दौड़ें, तो भी आएगा! Page 146 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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