SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया यहां अब मिरे राजदां और भी हैं।। थोड़ा सीमाओं के पार देखो--सितारों के पार--वहां सब एक है। जब पहला अमरीकी चांद पर पहुंचा तो तुम्हें पता है, उसे क्या भाव उठा! जब उसने पृथ्वी की तरफ देखा, तो चांद से पृथ्वी जैसी ही चमकती है, जैसा पृथ्वी से चांद चमकता है। चमकती हुई पृथ्वी देखी! और उसके मन में एक ही भाव उठा--मेरी पृथ्वी! यह भाव न उठा-- मेरा अमेरिका! उस फासले से कहां अमेरिका। मेरी पृथ्वी--उस पृथ्वी में रूस भी सम्मिलित था; चीन भी सम्मिलित था। उस पृथ्वी में भारत भी सम्मिलित था। वहां कोई नक्शा नहीं था बंटा हआ। पृथ्वी वहां एक थी। और इतनी प्यारी थी! सोचा भी न था कि चांद जैसी चमकती होगी। पृथ्वी भी उतनी ही चमकती है, जितना चांद चमकता है। चांद पर पहुंच गए, तो चांद नहीं चमकता फिर। फिर चांद पृथ्वी जैसा मालूम होता है। क्योंकि चांद की कोई अपनी किरणें नहीं हैं। सूरज की किरणें चांद पर पड़ कर लौटती हैं, प्रतिफलित होती हैं, इसलिए चमक आती है। जैसे दर्पण में से किरणें लौट जाती हैं। दर्पण की नहीं होती, आती तो दीए से हैं। लेकिन दीए से पकड़कर फिर लौट जाती हैं। दर्पण उन्हें लौटा देता है। ऐसी ही किरणें पृथ्वी से भी लौटती हैं। चांद पर खड़े होओगे, तो पृथ्वी भी इतनी जाज्वल्यमान, जैसे एक बड़ा हीरा चमकता हो! चांद से बड़ी है पृथ्वी--बहुत बड़ी है। तो बहुत बड़ा चांद! और उसके मन में एक ही भाव उठा--मेरी पृथ्वी! मेरी प्यारी पृथ्वी! अगर धार्मिक व्यक्ति को इतना भी बोध न हो, तो क्या उसे खाक धार्मिक कहो! चांद पर जाने की जरूरत नहीं है। इसलाम भी मेरा है। ईसाइयत भी मेरी है। हिंदू भी मेरा है। जैन भी मेरा है। सिक्ख भी मेरा है। सब मेरे हैं। मेरा धर्म! एक धम्मो सनंतनो--बुद्ध कहते हैं--यह जो सनातन धर्म है--ये सब उसकी शाखाएं समझो। उसी के पत्ते समझो।, राम कहो कि रहीम कहो--सवाल यह नहीं कि तुमने क्या कहा। सवाल यह है कि कहते वक्त तुम किस लोक में प्रवेश कर गए! अगर यह राम, यह अल्लाह तुम्हें सितारों के आगे ले जाए, तो सूफी हो गए। सितारों से आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं। मेलाराम असरानी! अभी प्रेम की कुछ और परीक्षाएं देनी होंगी। तुम तो सुन कर ही चिंता में पड़ गए कि यह कैसा सूफी नृत्य! यही सूफी नृत्य है। ऐसा ही होता है सूफी नृत्य। तुम शब्द में ही उलझ गए। तुमने ये नाचते हुए लोग न देखे, जो मस्त थे, लीन थे। तुमने उनकी मस्ती न देखी, उनकी बेखुदी न देखी। तुम इसी चिंता में पड़ गए कि सूफी नृत्य--और श्री राम, जय राम, जय जय राम का उदघोष! तालमेल नहीं बैठता! मंदिर में जैसे कोई कुरान Page 138 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy