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________________ ज्यों था त्यों ठहराया मेलाराम असरानी! यही तुम्हारी तकलीफ है। तुम पूछते हो, सूफी नृत्य में श्री राम, जय राम, जय जय राम की धुन गाई जाती है। यह कैसा सूफी नृत्य है? यहां जोर नृत्य पर है। अगर नृत्य में नर्तक खो जाए, तो नृत्य सूफी नृत्य हो जाता है। फिर से दोहरा दूं: अगर नृत्य में नर्तक खो जो, डूब जाए, तल्लीन हो जाए--नृत्य ही बचे, नर्तक न बचे; गीत में गायक खो जाए, गायक न बचे--गीत ही बचे। बस, स्वच्छता आ गई। एकदम बरस जाती है स्वच्छता। अमृत की धार बरस उठती है। इसलिए उसको सूफी नृत्य कहते हैं, क्योंकि यह सफा कर देता है, सफाई कर देता है। एकदम कचरे को धो देता है। अब किस बहाने तुम करते हो--चाहो, अल्लाहू का उदघोष करो; और चाहे जय राम श्री राम को। यह हिंदी अनुवाद है और कुछ भी नहीं। यह अल्लाह का हिंदी अनुवाद है। थोड़ा आंखें ऊपर उठाओ और आकाश की तरफ देखो। जमीन को खंड-खंड में बांट लिया हमने। आदमी को खंड-खंड में बांट लिया हमने। आदमी को खंड-खंड में बांट लिया। जरा अखंड आकाश को देखो। सितारों से आगे जहां और भी हैं। अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।। अभी तुमने प्रेम जाना है, मगर बड़ा सीमा में बंधा हुआ, डबरे की तरह। और जहां डबरा है, वहां सड़ांध है। हिंदू का डबरा हो कि मुसलमान का डबरा हो; सिख का कि जैन का-- जहां डबरा है, वहां सड़ांध है। जहां सीमा है, वहां सड़ांध है। सीमा से थोड़ा ऊपर उठो। यहां सब सीमाएं तोड़ी जा रही हैं। यहां सीमाओं को विसर्जित किया जा रहा है। यहां हम गणेश जी वगैरह को विसर्जित नहीं करते; सीमाओं को विसर्जित करते सितारों से आगे जहां और भी हैं। अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।। तही जिंदगी से नहीं ये फिजाएं। यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं।। कनाअत न कर आलमे-रंगो-बू पर। चमन और भी आशियां और भी हैं।। अगर खो गया इक निशेमन तो क्या गम। मकामाते-आहो-फुगां और भी हैं।। तू शाहीं है परवाज है काम तेरा। तिरे सामने आस्मां और भी हैं।। इसी रोज-ओ-शब में उलझ कर न रह जा। कि तेरे जमान-ओ-मकां और भी हैं।। गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में। Page 137 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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