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________________ ज्यों था त्यों ठहराया रवींद्रनाथ ने अपनी जीवन-कथा में एक उल्लेख किया है। उनके चाचा थे अवनींद्रनाथ ठाकुर। वे भारत के महानतम चित्रकारों में एक थे। पूरे भारत के इतिहास में जो थोड़े से महान चित्रकार हुए हैं, उनमें अवनींद्रनाथ ठाकुर का नाम भी जोड़ना पड़ेगा। अवनींद्रनाथ ठाकुर के शिष्य थे--नंदलाल बसु। वे भी बाद में, अवनींद्रनाथ ठाकुर से भी बड़े चित्रकार साबित हुए। एक दिन रवींद्रनाथ अपने चाचा के पास बैठे गपशप कर रहे थे। सुबह-सुबह चाय पीकर दोनों बैठे गपशप कर रहे थे। तभी नंदलाल, युवा थे, कृष्ण का एक चित्र बना कर लाए। रवींद्रनाथ ने लिखा है, मैंने इतना सुंदर चित्र कृष्ण का कभी देखा नहीं! रवींद्रनाथ खुद भी चित्रकार थे। कवि के साथ-साथ उतने ही बड़े चित्रकार भी थे। और अवनींद्रनाथ तो कहना ही क्या !... रवींद्रनाथ का हृदय धक से रह गया। इतना प्यारा चित्र था कृष्ण का, जैसे अब बांसुरी बजी-अब बांसुरी बजी! जैसे अब कृष्ण नाचे--अब कृष्ण नाचे! इतना सजीव था। विस्मय विमुग्ध होकर देखते रह गए। और अवनींद्रनाथ ने चित्र को देखा, लिया हाथ में और दरवाजे के बाहर फेंक दिया। और नंदलाल से कहा, यह कुछ मुझे दिखाने योग्य चित्र है? कुछ सोच-समझकर लाया कर। जब कोई चीज बताने योग्य हो, तो लाया कर। इससे अच्छे चित्र तो बंगाल के पटिये बना लेते साता बंगाल में पटिये होते हैं, जो कृष्णपट बनाते हैं--कृष्णाष्टमी के, जन्माष्टमी के अवसर पर। दो-दो पैसे में बेचते हैं। वे सबसे गरीब चित्रकार होते हैं। उनका काम ही कुल इतना होता है कि कृष्ण का किसी भी तरह चित्र बना देना, ताकि गांव के गरीब दो-दो पैसे में खरीद कर उसकी पूजा कर लें! उससे बड़ी कोई निंदा की बात नहीं हो सकती। अवनींद्रनाथ ठाकुर का यह कहना नंदलाल को कि तुझसे तो बंगाल के पटिये अच्छे। वे भी चित्र अच्छा बना लेते हैं कृष्ण का! यह क्या चित्र तू लेकर आया है। भाग यहां से। रवींद्रनाथ को तो बहुत धक्का लगा। भूल ही गए कि मेरे चाचा हैं। वृद्ध हैं। और मुझे इस तरह की बात उनसे नहीं कहनी चाहिए। नंदलाल तो चला गया, रवींद्रनाथ टूट पड़े चाचा पर कि यह हद्द हो गई! मैंने बहुत चित्र देखे हैं। आपके भी चित्र देखे हैं, जो आपने कृष्ण के बनाए हैं। वे भी इसके मुकाबले नहीं हैं। अवनींद्रनाथ ने कहा, शांत हो। और मेरी आंखों की तरफ देख। आंख से आंसू गिर रहे थे अवनींद्रनाथ के! रवींद्रनाथ तो और भी भौचक्के हए कि मामला क्या है! माजरा क्या है! कहा कि बात क्या है? आप रो क्यों रहे हैं? कहा, रो इसलिए रहा हूं कि नंदलाल के साथ मुझे बहुत कठोर होना पड़ रहा है। इसकी संभावना मुझसे बड़े चित्रकार होने की है। तू ठीक कहता है। मेरे चित्रों से उसका चित्र ज्यादा बेहतर है। लेकिन अभी इसमें और भी पड़ा है। अगर मैं इस पर चोट किए जाऊं, तो अभी इसमें और भी संभावना है। अभी इसकी पूरी संभावना वास्तविक नहीं बनी है। जिस दिन मैं Page 131 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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