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________________ ज्यों था त्यों ठहराया दुकानदार ने कहा, फेंक क्यों दूं! अरे, हाथ में ले लो न! इसने कहा कि मैं चाहे कितना ही बदनसीब मछलीमार क्यों न होऊं, लेकिन झूठ नहीं बोल सकता। पत्नी से जाकर कह सकूँगा--मैंने पकड़ीं। तुम फेंको, मैं पकडूं। झूठ मैं नहीं बोल सकता हूं। मछली चाहे न पकड़ में आती हो, मगर बोलूंगा तो सच ही। तुम फेंक दो, मैं पकड़ लूं! कहने को बात रह जाएगी! इसने इतनी बड़ी मछली पकड़ी थी कि पूरी झील में एक फुट नीचे उतर गया था पानी! नापजोख तो बेचारा बताए भी कैसे! लोग जब झूठ ही बोलने पर उतारू हो जाते हैं--वह अपना झूठ होना चाहिए, अहंकार को भरने वाला--तो फिर कोई उसमें हिसाब नहीं करते। तुम धर्म के नाम पर अंधविश्वासों का पोषण करते फिरते हो। और गुरु को ये सारे अंधविश्वास छीनने होंगे, तभी तुम्हारे जीवन में पहली बार श्रद्धा की ज्योति जगेगी। झूठी आंखें छोड़ो, तो असली आंखें खोजी जा सकती हैं। जब तक झूठी आंखों को ही लगाए बैठे रहोगे, तब तक असली आंखों का अन्वेषण भी कैसे होगा! आविष्कार भी कैसे होगा? गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, घड़ि-घड़ि काट्टै खोट! प्रति पल, घड़ी-घड़ी खोट पर खोट निकालता जाता है। जितना शिष्य राजी होता है, उतनी खोटें निकालता है, भीतर हाथ संवाद दे...। लेकिन भीतर से सम्हालता जाता है। कुम्हार को तुमने घड़ा बनाते देखा! एक हाथ घड़े के भीतर रखता है। भीतर से घड़े को सम्हालता है। और बाहर से ठोकर मारता है--दूसरे हाथ से। दोनों काम एक साथ करता है। जो समझदार है, वह दोनों बातों को समझ लेता है। जो नासमझ है, वह बाहर की चोट देख कर ही भाग खड़ा होता है। वह कहता है, इतनी चोटें मैं सहने को राजी नहीं। क्यों सहूं! इन चोटों से क्या होगा? योगतीर्थ पर मैंने बड़ी चोट की थी। मैंने तो उनसे यही कहा था कि तुम छोड़ ही दो संन्यास! वह बड़ी से बड़ी चोट है। लेकिन उसको भी उन्होंने प्यारे ढंग से लिया। समझे। छोड़ ही दो संन्यास--यूं है, जैसे तीर छाती में चुभ जाए। कोई और होता तो भाग ही खड़ा होता। लेकिन उन्होंने बात को विधायक ढंग से लिया। कोई और होता तो क्रुद्ध ही हो जाता। नाराज ही हो जाता सदा के लिए। चूंकि इस चोट को भी प्रेम से लिया है, यह चोट उनके ऊपर फूल बन जाएगी। भीतर हाथ संवार दे, बाहर मारे चोट! आपके प्रति धन्यवाद के भाव से भर गया हूं। अनंत अनंत धन्यवाद! शिष्य ऐसे ही लेता है। शिष्य चोट को चोट नहीं मानता। शिष्य चोट को आशीष ही मानता है। वही तो भेद है-- विद्यार्थी और शिष्य में। विद्यार्थी को चोट नहीं की जा सकती। उसको चोट की कि वह भाग ही जाएगा। शिष्य को चोट की जा सकती है। और जितना ही शिष्य गहन हो, उतनी ही गहरी चोट की जा सकती है। इसलिए यह बेबूझ घटना घटेगी कि गुरु उस शिष्य को सबसे ज्यादा मारेगा--पीटेगा, जिसमें सबसे ज्यादा संभावना है। Page 130 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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