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________________ ज्यों था त्यों ठहराया दूसरे दिन सुबह जब उसने मिट्टी हटाई और देखा कि सोने की ईंटें नदारद हैं! एकदम छाती पीट कर चिल्लाने लगा, लुट गया। मर गया! पड़ोसी ने कहा, क्या लुट गए, क्या मर गए। क्या हो गया? तो कहा कि मेरी सोने की ईंटें थीं, वह कोई चुरा ले गया। और ये साधारण मिट्टी की ईंटें रख गया! पड़ोसी ने कहा कि तुम्हें फर्क ही क्या पड़ता है! इन्हीं को खोद कर रोज देख लिया करना। अरे, तुम्हें देखना ही है न खोद कर! जिंदगी मुझे हो गई तुम्हें देखते। बस, तुम इतना ही तो काम करते हो--उन ईंटों का इतना ही तो मूल्य है--कि रोज खोद कर देखना है। अब तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि सोने की हैं कि मिट्टी की। खोद कर देख ली; दबा दी! तुम्हें कुछ उपयोग तो करना नहीं। खानी तो रूखी-सूखी है, सो तुम खाते रहोगे। पहनने तो पुराने जराजीर्ण कपड़े हैं, सो तुम पहनते रहोगे। कंजूस भी अपने लिए तर्क खोज लेते हैं। वे कहते हैं--सादा जीवन--ऊंचे विचार! हैं कृपण, लेकिन कृपणता को भी ओट में कर लेते हैं। उस पर भी चूंघट डाल देते हैं! हैं कुरूप, लेकिन बूंघट डाल देते हैं। तुमने खयाल कियाः कुरूप से कुरूप स्त्री भी बूंघट डाल कर निकल जाए, तो लोग झांकझांक कर देखने लगते हैं! बुरके में छुपा कर किसी स्त्री को ले जाओ...स्त्री को क्या, अगर पुरुष को भी ले जाओ, तो भी लोग झांक-झांककर देखने लगते हैं। रुक-रुक कर! ठहर-ठहर कर! लौट-लौट कर! जिस चीज को भी छपा दो, उसमें रस पैदा हो जाता है। रस फिर बढ़ता चला जाता है! और हमने अपनी सब कुरूपताओं को छिपा लिया है। दूसरे ही नहीं उसमें रस ले रहे हैं; धीरे-धीरे हम भी उसमें रस लेने लगे हैं। हम अपने अंधविश्वासों की भी यूं सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि जैसे उनमें परम सत्य छिपे हुए हैं। हिंदुओं के एक बहुत बड़े महात्मा ने एक किताब लिखी है--हिंदू-धर्म क्यों? उसमें हिंदू-धर्म के संबंध में वैज्ञानिक आधार दिए हैं। और क्या-क्या बातें कहीं हैं कि हैरानी होती है कि बीसवीं सदी में भी ऐसी किताबें छप जाती हैं! और छोटी-मोटी किताब नहीं है। साढ़े सात सौ पन्नों की किताब है! और लिखने वाला भारी महात्मा है। और कैसे-कैसे मूढ महात्मा बन बैठे हैं! उसने लिखा है कि हिंदू इसलिए चोटी रखते हैं, जैसे कि बड़े-बड़े मकानों पर, चर्चों पर, मंदिरों पर लोहे की सलाख लगा देते हैं, ताकि बिजली गिरे, तो सलाख के द्वारा सीधी जमीन में चली जाए। चर्च के मकान को या मंदिर को या इमारत को कोई चोट न पहुंचे! इसीलिए हिंदू चोटी रखते हैं! और चोटी में गांठ बांध कर उसको खड़ी रखते हैं, ताकि बिजली वगैरह न गिरे! बिजली गिरे भी तो चोटी के सहारे एकदम जमीन में चली जाए! क्या गजब के लोग हैं! कैसे-कैसे मूढ, कैसे-कैसे मंदबुद्धि! मगर हिंदू प्रसन्न होंगे इस बात से, कि क्या गजब की बात कह दी! Page 128 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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