SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसकी छाया भी शीतलता देने वाली होती है। इसके रंग, रूप, गंध व स्पर्श अति मनोज्ञ होते हैं किन्तु जो इन वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज अथवा हरित खाता है अथवा छाया में विश्राम करता है, वह उसके लिए आपात भद्र होता है। तत्पश्चात् परिणत होते-होते वे असमय में ही जीवन का विनाश कर देते हैं। 13 वृत्तिकार ने निगमन गाथा में विषयों की तुलना नन्दी फलों से की हैं - वृत्तिकार के शब्दों में - नंदिफलाई त्व इह, सिवपहपडि पण्णगाण विसया। तब्भक्खणाओ मरणं, जह तह विसरहि संसारो।। शिवपथ प्रतिपन्न व्यक्तियों के लिए विषय नंदी फलों के समान हैं। जैसे- नंदी फलों के भक्षण से मृत्यु होती है, वैसे ही विषयों से संसार बढ़ता है। 131 4.20. किम्पाक फल - यह फल देखने में अति सुंदर और खाने में अति स्वादिष्ट होता है किन्तु परिपाक के समय यह जीवन का अंत कर देता है। इसी प्रकार काम भोग भी भोग के समय प्रिय लगते हैं पर उनका विपाक अशुभ होता है। उत्तराध्ययन सूत्र एवं ज्ञानार्णव में काम भोगों को किम्पाक फल से उपमित किया गया है। 4.21. हट - यह एक प्रकार की जलीय वनस्पति होती है। थोड़ी सी हवा चलने पर यह छिन्न-भिन्न हो जाती है। दसवैकालिक एवं उत्तराध्ययन दोनों ही सूत्रों में काम भोगों को हट की उपमा देते हुए कहा गया है कि जो स्त्री आदि के प्रति राग भाव रखता है वह हट के समान मानसिक अस्थिरता का शिकार हो जाता है। 4.22. गोपाल और भाण्डपाल - गोपाल दूसरों की गायों को चराता है और भाण्डपाल दूसरों के वजन को ढ़ोता है। उसके स्वामी वे नहीं होते। इसी प्रकार जो साधक, साधना में स्थिर नहीं होता वह केवल वेश का भार ढोता है साधना का स्वामी वह नहीं होता। 4.23. बिल्ली-चूहा - उत्तराध्ययन सूत्र में स्त्रियों को बिल्ली और ब्रह्मचारी को चूहों की उपमा देते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार बिल्ली की बस्ती के पास चूहों का रहना अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार स्त्रियों की बस्ती के पास ब्रह्मचारी का रहना अच्छा नहीं होता। 4.24. प्रकाश लोलुप पतंगा - जिस प्रकार प्रकाश लोलुप पतंगा दीपक की लौ में जलकर विनष्ट हो जाता है। उसी प्रकार जो मनोज्ञ रूपों में तीव्र आसक्ति करता है वह अकाल में ही विनष्ट हो जाता है। 4.25. अग्नि - उत्तराध्ययन सूत्र में काम को अग्नि की उपमा अनेक रूपों से दी गई है। सघन जंगलों में हवा द्वारा पेड़ों के घर्षण से अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है। इसे 'दावानल' कहते हैं। तेज हवा के झोंकों के कारण प्रचुर ईंधन वाला वह दावानल उपशांत नहीं होता। इसी प्रकार, 68
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy