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________________ सूत्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार नागदमनी आदि औषधियों की गंध में गृध बिल से निकलता हुआ रागातुर सर्प अपने प्राण खो देता है, उसी प्रकार जो मनोज्ञ गंध में तीव्र आसक्ति रखता है वह अकाल में ही विनष्ट हो जाता है। 122 धर्मामृत अनगार में काम को एक अपूर्व सर्प कहा गया है। इसके अनुसार यह संकल्परूपी अण्डे से पैदा होता है। इसके राग, द्वेष रूपी दो जिह्वाएं होती हैं। अपनी प्रेमिका विषयक चिंता ही उसका रोष है। रूपादि विषय ही उसके छिद्र हैं। जैसे सांप छिद्र पाकर उसमें घुस जाता है उसी तरह स्त्री का सौंदर्य आदि देखकर काम का प्रवेश होता है। वीर्य का उद्रेक उसकी बड़ी दाढ़ है जिससे वह काटता है। रति उसका मुख है। वह लज्जारूपी केंचुली को छोड़ता है। प्रतिक्षण बढ़ते हुए दस वेग ही उसका दुःखदायी विष है। ज्ञानार्णव और भगवती आराधना में भी काम को सर्पराज से उपमित करते हुए कहा गया है कि सर्प के डसने पर तो सात ही वेग (विकार) होते हैं पर काम सर्प के डसने पर दस वेग उत्पन्न होते हैं। 124 4.15. वमन - किसी ने अतिपौष्टिक और स्वादिष्ट आहार किया। किसी कारणवश वमन हो जाए उस वमन को फिर से चाटना अतिघृणित और जुगुप्सित माना जाता है। इसी प्रकार त्यागे हुए काम भोग को फिर से चाहना, वमन चाटने के समान कहा गया है। दसवैकालिक सूत्र के अनुसार अगंधन कुल के सर्प जैसे तुच्छ प्राणी भी अग्नि में जल मरना स्वीकार कर लेते हैं किन्तु वमन किए हुए विष को वापस नहीं पीते। उत्तराध्ययन सूत्र में भी त्यागे हुए काम भोगों को वापस सेवन करना वमन पीने के समान कहा गया है। 120 4.16. गरुड़ - गरुड़ पक्षी सांप को मारकर खा जाता है। इसलिए सांप हमेशा गरुड़ से शंकित होकर रहता है, बचकर चलता है। उत्तराध्ययन सूत्र में मनुष्य को सांप और विषय भोगों को संसार बढ़ाने वाले गरुड़ से उपमित करते हुए मनुष्य को विषय भोगों से बच कर रहने को कहा गया है। 4.17. बिजली की चमक - बिजली की चमक बहुत ही चंचल होती है। एक क्षण में चमक कर विलुप्त हो जाती है। उत्तराध्ययन सूत्र में मनुष्य के जीवन और सौंदर्य को बिजली की चमक की उपमा देते हुए क्षणभंगुर कहा है। 28 4.18. पानी का बुलबुला - पानी में हलचल होने से बुलबुले उत्पन्न होते हैं और बहुत ही जल्दी फूटकर फिर पानी में विलीन हो जाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में मनुष्य के शरीर को पानी के बुलबुले के समान नश्वर कहा गया है। 29 4.19. नन्दीफल - ज्ञाताधर्मकथा में नन्दीफल के वृक्ष का वर्णन इस प्रकार मिलता है - नन्दी फल के वृक्ष पत्र, पुष्प व फल से भरपूर होते हैं। इसकी हरीतिमा चित्ताकर्षक होती है। 67
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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