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________________ (2) मदन काम वेदोपयोग काम ( स्त्री पुरुष की परस्पर विकार भावना) को 'मदन काम' कहते हैं।" काम भोग के चार प्रकार काम भोगों को गुणात्मकता की दृष्टि से ठाणं सूत्र में चार भेद किए गए हैं- (1) श्रृंगार (2) करुण (3) वीभत्स (4) रौद्र देवताओं का काम शृंगार रस प्रधान होता है। मनुष्यों का काम करुणरस प्रधान होता तिर्यञ्चों का काम वीभत्स रस प्रधान होता है। नैरयिकों का काम रौद्र रस प्रधान होता है। है। है। (iii) काम भोग का पूर्वापर्व संबंध- पहले काम होता है, फिर भोग होता है। इंद्रियों के विषय के आसेवन को भोग कहते हैं। यह काम का उत्तरवर्ती है। 55 (iv) काम की तरतमता काम वासना की मात्रा सभी में समान नहीं होती। इसकी मात्रा में तरतमता पाई जाती है। इसके आधार पर आचारांग भाष्यकार ने व्यक्तियों को तीन श्रेणी में बांटा है। - (1) अल्प इच्छा वाले । (2) महान इच्छा वाले । (3) इच्छा रहित। 56 ज्ञानार्णव में काम का कारण प्राणियों के संकल्प को मानते हुए इसकी तरतमता के अनुसार इसके तीन प्रकार बताए है तीव्र मध्यम और मन्द। 57 58 59 (v) काम के वेग - धर्मामृत अणगार तथा भगवती आराधना में इच्छित स्त्री के न 2. मिलने पर मनुष्य की दस अवस्थाओं का चित्रण हैं - 1. 3 4 - 3. 4. 5. 6. 7. 8. कामी पुरुष काम के प्रथम वेग में शोक करता है। दूसरे वेग में उसे देखने की इच्छा करता है। तीसरे वेग में लम्बी-लम्बी सांसें भरता है। चौथे वेग में उसे ज्वर चढ़ जाता है। पांचवें वेग में शरीर में दाह उत्पन्न हो जाती है। छठे वेग में खाना-पीना अच्छा नहीं लगता। सातवें वेग में मूर्च्छित हो जाता है। आठवें वेग में उन्मत्त (पागल) हो जाता है। 57
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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