SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9. 10. 2.37 कुशील अब्रह्मचर्य के लिए कुशील शब्द का प्रयोग भी अनेक स्थानों पर प्रयुक्त हुआ है। सूत्रकृतांग सूत्र के चूर्णिकार और वृत्तिकार ने कुशीलों का दो प्रकार से वर्गीकरण किया है - पांच प्रकार के कुशील - (1) पार्श्वस्थ (2) अवसन्न (3) कुशील (4) संसक्त (5) यथाछंद । अथवा नौ प्रकार के कुशील 5 उपरोक्त (6) कथिक (7) प्राश्निक (8) संप्रसारक (9) मामक।' 2.38 ग्राम्य क्रीड़ा - अब्रह्मचर्य के लिए ग्राम्य क्रीड़ा अर्थात् काम क्रीड़ा शब्द का भी प्रयोग मिलता है। सूत्रकृतांग सूत्र में इसके अनेक प्रकार हैं- हास्य, कंदर्प, हस्त स्पर्श, आलिंगन आदि। 61 नौवें वे में उसे कुछ भी ज्ञान नहीं रहता। दसवें वेग में उसकी मृत्यु हो जाती है। 2.39 'लिंग' एवं 'वेद' - 'लिंग' एवं 'वेद' जैनागमों के पारिभाषिक शब्द हैं। लिंग का अर्थ है 'आकार' विशेष या 'चिन्ह'। ये तीन प्रकार के होते हैं - स्त्री लिंग, पुरुष लिंग व नपुंसक लिंग। लिंग का दूसरा नाम वेद (द्रव्य) भी है। वेद का अभिप्राय है वासना । 62 — समवायांग सूत्र में वेद के तीन प्रकार हैं स्त्री वेद, पुरुष वेद व वेद के भेद प्रभेद नपुंसक वेद । 63 ये तीनों वेद द्रव्य और भाव रूप से दो-दो प्रकार के हैं। 1. जिस चिन्ह से पुरुष की पहचान होती है, वह द्रव्य पुरुष वेद है और स्त्री के संसर्ग सुख की अभिलाषा भाव पुरुष वेद है। स्त्री की पहचान का साधन द्रव्य स्त्री वेद है और पुरुष के संसर्ग सुख की अभिलाषा भाव स्त्री वेद है। जिसमें कुछ रवी के चिन्ह और कुछ पुरुष के चिन्ह हो वह द्रव्य नपुंसक वेद और स्त्री-पुरुष दोनों के संसर्ग सुख की अभिलाषा भाव नपुंसक वेद है। द्रव्य वेद का अर्थ ऊपर के चिन्ह से है और भाव वेद का मतलब अभिलाषा विशेष से है। द्रव्य वेद पौद्गलिक आकृति विशेष है जो नाम कर्म के उदय के कारण होता है। भाव वेद एक प्रकार का मनोविकार है, जो मोहनीय कर्म के उदय से होता है। अतः पतन का कारण लिंग (द्रव्य वेद) नहीं भाव वेद (वासना) है द्रव्य वेद और भाव वेद के बीच साध्य साधन पौष्य पोषक का संबंध हैं। 2. 3. त्रिवेद का स्वभाव 1. स्त्री वेद स्त्री में कोमल भाव मुख्य है जिसे कठोर तत्व की अपेक्षा रहती है। 58 -
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy