SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं होती है। देवियों का अस्तित्व केवल दूसरे देवलोक तक ही है। सौधर्म और ईशान देवलोक में - स्पर्श परिचारणा, ब्रह्म और लांतक में शब्द परिचारणा, शेष चार में देवलोकों में किसी भी प्रकार की कायपरिचारणा ही होती है। - 47 काम भोग यह शब्द अब्रह्मचर्य को एक विस्तृत अर्थ देता है। यहां ब्रह्मचर्य मात्र मैथुन क्रिया ही न रहकर सभी इंद्रिय विषयों को अपने में समाहित कर लेता है। जैन आगमों में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। - 2.36 48. (i) परिभाषा - काम और भोग ये दो अलग-अलग शब्द हैं। विभिन्न ग्रंथकारों ने इन्हें विभिन्न दृष्टियों से परिभाषित किया है जैसे भगवती सूत्र में शब्द और रूप को काम तथा गन्ध, रस, स्पर्श को भोग कहा हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के चूर्णिकार ने इनके दो-दो अर्थ किए हैं - (1) जिसकी कामना की जाती है। (2) काम वासना । काम भोग (1) जिनका उपभोग किया जाता है। (2) सभी इंद्रियों के विषय वृहद् वृत्तिकार ने उपरोक्त के अतिरिक्त काम भोग का अर्थ विस्तार भी किया है। (1) शब्द और रूप है काम तथा स्पर्श, रस और गंध है भोग। (2) स्त्रियों का संसर्ग या आसक्ति है काम तथा शरीर के परिकर्म के साधनधूपन, विलेपन आदि भोग हैं। दसवैकालिक सूत्र में इंद्रियों के विषय स्पर्श, गंध, रस और शब्द का आसेवन भोग कहलाता है। - कायपरिचारणा, सनत्कुमार और माहेंद्र देवलोक में देवलोक में रूप परिचारणा, शुक्र और सहस्रार देवलोक मन परिचारणा का अस्तित्व रहता है। इसके ऊपर के परिचारणा नहीं होती। मनुष्य और तिर्यञ्चों में केवल 51 (ii) काम के प्रकार आचारांग भाष्य में काम के दो प्रकार बताए गए हैं - (1) (2) - इच्छा काम - स्वर्ण आदि पदार्थों को प्राप्त करने की कामना । मदन काम शब्द आदि इंद्रिय विषयों की कामना । 52 उत्तराध्ययन के व्याख्याकार ने भी अर्थ भेद के साथ ये ही दो भेद किए हैं(1) इच्छा काम अभिलाषा रूपी काम को 'इच्छा काम' कहा गया 56
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy