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________________ काम गुण के प्रकार - ठाणं सूत्र में काम गुण पांच प्रकार के बताए हैं - (1) शब्द (2) रूप (3)गंध (4) रस (5) स्पर्श। प्रश्नव्याकरण सूत्र में वर्णित उपरोक्त तीस नामों के अतिरिक्त अन्यान्य आगम ग्रंथों एवं व्याख्या साहित्य में भी अब्रह्मचर्य का विवेचन भिन्न-भिन्न दृष्टियों से तथा विभिन्न नामों के साथ किया गया है। जैसे2.31 विषयासक्ति (अध्युपपादन) - ठाणं सूत्र में इसके तीन प्रकारों का वर्णन हैं - (1) ज्ञानपूर्वक (2) अज्ञानपूर्वक (3) चिकित्सापूर्वक 2.32 बहिद्ध - अब्रह्मचर्य के लिए बहिद्ध शब्द भी मिलता है। सूत्रकृतांग सूत्र के चूर्णिकार ने इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है - धर्माद् बहिर्भवतीति बहिद्ध। अर्थात् जो धर्म से बहिर्भूत है वह बहिद्ध - मैथुन (अब्रह्मचर्य) है। स्थानांग टीका में भी मैथुन (अब्रह्मचर्य) के लिए "बहिद्धा" शब्द का प्रयोग हुआ है। 2.33 पर्यापादन - ठाणं सूत्र में विषय सेवन रूपी अब्रह्मचर्य के लिए ''पर्यापादन" शब्द का प्रयोग भी किया है तथा इसके तीन प्रकार बताए गए हैं- (1) ज्ञानपूर्वक (2) अज्ञानपूर्वक (3) चिकित्सापूर्वक 2.34 संवास - अर्थात् संभोग- ठाणं सूत्र के अनुसार यह चार प्रकार का होता हैं (1) कुछ देव देवी के साथ संभोग करते हैं। (2) कुछ देव नारी तिर्यञ्च स्त्री के साथ संभोग करते हैं। (3) कुछ मनुष्य या तिर्यञ्च देवी के साथ संभोग करते हैं। (4) कुछ मनुष्य या तिर्यञ्च स्त्री के साथ संभोग करते हैं। 45 2.35 परिचारणा - ठाणं सूत्र में मैथुन के आसेवन के लिए ''परिचारणा'' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। इसके पांच प्रकार हैं - (1) काय परिचारणा - स्त्री और पुरुष के काय से होने वाले मैथुन का आसेवन। (2) स्पर्श परिचारणा - स्त्री के स्पर्श से होने वाले मैथुन का आसेवन। रूप परिचारणा - स्त्री के रूप को देखकर होने वाला मैथुन का आसेवन। (4) शब्द परिचारणा - स्त्री के शब्द सुनकर होने वाला मैथुन का आसेवन। (5) मन: परिचारणा - स्त्री के प्रति मानसिक संकल्प से होने वाला मैथुन का आसेवन। 45 इसका तात्पर्य है कि कायपरिचारणा की भांति स्त्री का स्पर्श करने, रूप देखने, शब्द सुनने और मानसिक संकल्प करने से देवों की मैथुन वृत्ति तृप्त हो जाती है। वृत्तिकार ने इन सबको देवताओं से संबंधित माना है। तत्त्वार्थ सूत्र में भी यही प्रतिपादित है, बारहवें देवलोक तक के देवों में मैथुनेच्छा होती है। उसके ऊपर के देवों में वह 55
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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