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________________ प्रकार जोड़ा न भी हो और स्त्री या पुरुष में से कोई एक ही व्यक्ति काम राग के आवेश में जड़ वस्तु के आलम्बन से अथवा अपने हस्त आदि अवयवों द्वारा दुराचार का सेवन करता है तो वह मैथुन ही कहलाएगा। कोशगत अर्थ - पाइयसहमहण्णवो में मैथुन का अर्थ रति क्रिया और संयोग किया 2.2.1 मैथुन के भेद-प्रभेद 1. मैथुन के दो प्रकार - आचार्य महाप्रज्ञ ने मैथुन के दो प्रकार का उल्लेख किया है :- (1) सूक्ष्म और (2) स्थूल। उनके अनुसार मन, इंद्रिय और वाणी में जो अल्प विकार उत्पन्न होता है, वह सूक्ष्म मैथुन है और शारीरिक काम चेष्टा करना स्थूल मैथुन है। 20 2. मैथुन के तीन प्रकार - ठाणं सूत्र में मैथुन के तीन प्रकार बताए हैं।" दिव्य - देव संबंधी मैथुन को दिव्य मैथुन कहते हैं। _ii मानुषिक - मनुष्य से संबंधित मैथुन को मानुषिक कहा जाता है। iii तिर्यञ्च - पशु, पक्षी आदि के साथ मैथुन तिर्यञ्च कहलाता है। दसवैकालिक सूत्र के व्याख्या ग्रंथों में उपरोक्त मैथुन के प्रकार को 'रूप सहित द्रव्य में मैथुन' के अंतर्गत समाहित किया गया है। इसके अतिरिक्त ‘रूप में मैथुन' नया वर्गीकरण दिया है। इसका अर्थ है - निर्जीव वस्तुओं के साथ जैसे प्रतिमा या मृत शरीर के साथ किया जाने वाला मैथुन। 3. मैथुन सेवन के कर्ता के तीन प्रकार - ठाणं सूत्र में मनुष्य संबंधी मैथुन के सेवन कर्ता की दृष्टि से तीन प्रकार बताए हैं - (1) स्त्री (2) पुरुष (3) नपुंसक। वृत्तिकार ने स्त्री, पुरुष और नपुंसक के लक्षणों का संकलन इस प्रकार किया है। (1) स्त्री - योनि, मृदुता, अस्थिरता, मुग्धता, क्लीवता, स्तन और पुरुष के प्रति अभिलाषा। ये स्त्री के सात लक्षण कहे गए हैं। (2) पुरुष - इनके भी निम्न सात लक्षण होते हैं। लिंग, कठोरता, दृढ़ता, पराक्रम, दाढ़ी-मूंछ, धृष्टता और स्त्री के प्रति अभिलाषा। (3) नपुंसक - इनके ये लक्षण हैं - स्तन और दाढ़ी-मूंछ, ये कुछ अंशों में होते हैं, परंतु पूर्ण विकसित नहीं होते, इनमें अत्यंत प्रज्ज्वलित कामाग्नि पाई जाती हैं। 24 4. मात्रा के अनुसार भेद - आचारांग भाष्य में मैथुन सेवन कर्ता की कामुकता के परिमाण के आधार पर इन्हें तीन विभागों में विभक्त किया गया हैं - (1) अल्प इच्छा वाले - इनमें कामुकता की स्थिति काफी मंद होती है। 50
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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