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________________ मूलाराधना में भी इन्हीं दसों को शील की विराधना का कारण माना गया है। 13 धर्मामृत अनगार एवं भगवती आराधना में ब्रह्मचर्य के विघातक तत्त्वों को अब्रह्म मानते हुए इसके दस प्रकारों की चर्चा की हैं - 1. इच्छिविसयाभीलासो - स्त्री संबंधी इंद्रिय विषयों की इच्छा करना। आंखों से उसके सौंदर्य का, जिह्वा से उनके अधरों का, नाक से उसकी देह या सांसों आदि की सुगंध का, स्पर्शन् से उनके अंग स्पर्श का तथा कान से उनके गीत आदि शब्दों को सुनने की इच्छा करना। 2. वत्थि मोक्खो - अपने इंद्रिय अर्थात् लिंग में विकार उत्पन्न करना तथा विकार उत्पन्न होने पर उसे दूर न करना। 3. वृष्यरस सेवा - वीर्य वृद्धिकारक दूध, उड़द आदि पौष्टिक आहार आदि का सेवन करना। 4. संसक्त द्रव्य सेवा - स्त्री का स्पर्श अथवा इसी प्रकार स्त्रियों से संबद्ध शय्या आदि का स्पर्श करना अथवा उनका उपयोग करना। 5. तदिद्रियालोचन - स्त्री के गुप्तांगों को दृष्टि डाल कर देखना। सत्कार - अनुरागवश स्त्री का सत्कार करना। सम्मान - उनके देह पर वस्त्र, माला आदि से सम्मान करना। अतीत स्मरण - भूतकाल में की रति क्रीड़ाओं का स्मरण करना। अनागताभिलाष - 'भविष्यत् काल में उनके साथ ऐसी क्रीड़ा करूँगा', ऐसी अभिलाषा करना। 10 इष्ट विषय सेवा - इष्ट विषयों का सेवन करना। 14 2.2 मैथुन (मेहुणं) प्रश्नव्याकरण सूत्र में इसका अर्थ मिथुन अर्थात् नर-नारी के संयोग से होने वाला कृत्य तथा नर नारी के युगल की क्रिया माना गया है। जैन सिद्धांत दीपिका में मिथुन (स्त्री और पुरुष के जोड़े) की काम राग जनित चेष्टाओं को मैथुन कहा गया है।" पं. सुखलाल संघवी ने तत्त्वार्थ सूत्र के विवेचन में इसकी विस्तृत व्याख्या की है। उनके अनुसार मैथुन का अर्थ मिथुन की प्रवृत्ति है। मिथुन' शब्द सामान्य रूप से 'स्त्री और पुरुष का जोड़ा' के अर्थ में प्रसिद्ध है। इसका विस्तृत अर्थ करें तो जोड़ा स्त्री-पुरुष का, पुरुष-पुरुष का, या स्त्री-स्त्री का भी हो सकता है और वह सजातीय-मनुष्य आदि एक जाति का अथवा विजातीय-मनुष्य, पशु आदि भिन्न-भिन्न जाति का भी हो सकता है। एक जोड़े की काम राग के आवेश से उत्पन्न मानसिक, वाचिक अथवा कायिक कोई भी प्रवृत्ति मैथुन अर्थात् अब्रह्मचर्य कहलाती है। उन्होंने मैथुन का असली भावार्थ 'काम राग जनित कोई भी चेष्टा' किया है। इस 49
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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