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________________ (2) महान इच्छा वाले इनमें अति तीव्र कामुकता पाई जाती है। 25 (3) इच्छा रहित - शुद्ध चेतना, कामुकता का सर्वथा अभाव रहता है।" 5. मैथुन के चार प्रकार - दसवैकालिक सूत्र के जिनदासगणि महत्तर चूर्णि में द्रव्य, मैथुन के चार विभाग इस प्रकार किए गए हैं : द्रव्य दृष्टि से मैथुन का विषय चेतन और अचेतन पदार्थ हैं। क्षेत्र दृष्टि से उसका विषय तीनों लोक हैं। काल दृष्टि से उसका विषय दिन और रात हैं। क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से - (1) (2) (3) (4) भाव दृष्टि से उसका हेतु राग-द्वेष हैं। 6. मैथुन के चार प्रकारमूलाचार के रचनाकार के अनुसार सजीव देव आदि के अतिरिक्त मैथुन की उत्पत्ति अचित पदार्थों के द्वारा भी देखी गई है। यद्यपि इसमें जोड़ा नहीं होता, फिर भी भावों की कलुषता सचित के समान होती है। इसलिए अचित पदार्थों को भी मैथुन का कारण मानते हुए मैथुन के चार प्रकार बताए गए हैं- (1) अचेतन (2) देव (3) मनुष्य (4) तिर्यञ्च 27 7. मैथुन के दस प्रकार - ज्ञानार्णव में दस प्रकार के मैथुन का उल्लेख हैं। 28 1. शरीर का श्रृंगार करना 2. गरिष्ठ भोजन 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. गीत सुनना, नृत्य देखना और वाद्य यंत्र सुनना स्त्री से संबंध स्थापित करना स्त्रीविषयक विचार स्वी के अंगों को देखना स्त्री का सत्कार करना पूर्व में अनुभव किए गए सम्भोग का स्मरण करना भविष्य का चिंतन 10. वीर्य का क्षरण इनमें पहले, चौथे, पांचवें व दसवें को छोड़कर शेष अब्रह्म के प्रकारों के समान है। 2.2.2 मैथुन संज्ञा संज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है "चेतना" अथवा "इच्छा"। यह जैन परम्परा का पारिभाषिक शब्द है, यहां उसका अर्थ है - मोहनीय एवं असातावेदनीय कर्म के उदय से चेतना शक्ति का विकार युक्त हो जाना।" ठाणं सूत्र में चार प्रकार की संज्ञाएं बताई गई हैं। 1. आहार संज्ञा 2. भय संज्ञा 3. मैथुन संज्ञा और 4. परिग्रह संज्ञा । श्री पन्नवणा सूत्र के आठवें पद में संज्ञा के दस प्रकार बताए हैं। अनेक सूत्रों में सोलह भेद भी प्ररूपित किए गए हैं। 30 31 51
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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