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________________ तक धर्म का आचरण करें। शारीरिक सामर्थ्य के साथ-साथ ब्रह्मचर्य के प्रति प्रियता आकषर्ण को भी आवश्यक आवश्यकता माना है। इसी सूत्र में कहा गया है कि वृद्धावस्था में काम सेवन के लिए शरीर तो सक्षम नहीं रहता फिर भी मन बूढ़ा नहीं होता। इसलिए ब्रह्मचर्य प्रिय नहीं होता। आकर्षण अब्रह्मचर्य की ओर ही होता है। ब्रह्मचर्य के प्रति आकर्षण हो तो किसी भी उम्र में इसकी साधना की जा सकती है। 143 142 - उत्तराध्ययन सूत्र में वर्तमान को ही साधना का सर्वोत्तम काल बताते हुए भविष्य पर साधना को छोड़ने का निषेध इस प्रकार किया है। "कल की इच्छा वही कर सकता है, जिसकी मृत्यु के साथ मैत्री हो, जो मौत के मुंह से बच कर पलायन कर सके और जो जानता हो मैं नहीं मरूंगा।" 144 5.2 ब्रह्मचर्य साधना: प्रयोजन साधना सौद्देश्य होती है। इसके उद्देश्य दो प्रकार के हो सकते हैं - ( 1 ) लौकिक या भौतिक और (2) लोकोत्तर या आध्यात्मिक । यद्यपि ब्रह्मचर्य साधना से शारीरिक शक्ति, सौंदर्य, सम्मान आदि भौतिक लाभ होते हैं किन्तु मुख्य उद्देश्य आत्म शुद्धि ही है। दसवैकालिक सूत्र में संपूर्ण आचार के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि न इहलोक के लिए, न परलोक के लिए न कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक के लिए, मात्र आत्महित के लिए आचार का पालन करना चाहिए। " 5.3 145 ब्रह्मचर्य एक दुष्कर साधना 146 संयम का पथ प्रतिस्रोतगामी होता है। इसमें अनेक प्रकार के परीषह (समस्याएं) आते रहते हैं। प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को दुष्कर साधना कहा है। कठिनाईयों का वर्णन अनेक उदाहरणों के साथ किया गया है 'उत्तराध्ययन सूत्र में इसकी * इसमें जीवन पर्यन्त विश्राम नहीं है, यह गुणों का महान भार है भारी भरकम लौह भार की भांति इसे उठाना बहुत ही कठिन है। 147 * आकाश गंगा के स्रोत के प्रतिस्रोत में चलना और भुजाओं से सागर को तैरना कठिन कार्य है, वैसे ही गुणोदधि संयम को तैरना कठिन कार्य है। 148 * संयम बालू के कोर की तरह स्वाद रहित है, तप का आचरण करना तलवार की धार पर चलने जैसा है। 149 * एकाग्र दृष्टि से चरित्र का पालन करना बहुत ही कठिन कार्य है जैसे लोहे के यवों को चबाना कठिन है वैसे ही चरित्र का पालन कठिन है। 150 * जैसे प्रज्ज्वलित अग्नि शिखा को पीना बहुत ही कठिन कार्य है वैसे ही यौवन में 32
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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