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________________ (9) हाथी - मकड़ी का जाल मच्छर जैसे तुच्छ प्राणी को ही फंसा सकता है, पर हाथी जैसे विशाल प्राणी को नहीं फंसा सकता। इसी प्रकार, इन्द्रिय विषय दुर्बल व्यक्ति को ही अपने वश में कर सकते हैं सत्पुरुष - सबल व्यक्तियों पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। उत्तराध्ययन के वृत्तिकार के शब्दों में - विषयगण: कापुरूषं करोति वशवर्तिनं न सत्पुरुषम् । 135 बध्नाति मशकं एव हि लूतातन्तुर्नमातंगम् ।। 5.0 ब्रह्मचर्य साधना ब्रह्मचर्य साधना को कब व क्यों करना चाहिए एवं उसकी अर्हताओं पर विचार किया जा रहा है। 5.1 ब्रह्मचर्य साधना का समय ब्रह्मचर्य का पथ कब स्वीकार किया जाए? इस प्रश्न पर विभिन्न मतों में ऐक्य नहीं है। अनेक धर्म दर्शनों में जीवन को विभिन्न भागों में बांट कर उसके कुछ हिस्सों में ही ब्रह्मचर्य का विधान है। इनमें बाल एवं वृद्धावस्था में ब्रह्मचर्य मान्य है एवम् तरुणावस्था को भोग के लिए ही माना गया है। माना है। 136 137 आचारांग सूत्र के भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ यद्यपि तीनों ही वय - बचपन, युवा और वृद्धावस्था में प्रव्रज्या (ब्रह्मचर्य) के पक्षधर हैं। फिर भी प्रथम व द्वितीय अवस्था को साधना के लिए अधिक सुकर मानते हैं। उनकी मान्यता है कि यौवन' ही धर्म की आराधना हो सकती है। बुढ़ापे में जीर्ण-शीर्ण शरीर धर्माराधना करने में समर्थ नहीं होता है। 138 सूत्रकृतांग में उम्र की सीमा न बांधते हुए कहा गया है कि उचित समय पर ब्रह्मचर्य की साधना स्वीकार्य है। 139 ठाणं सूत्र में मनुष्य की उम्र को तीन वय में विभक्त किया गया है प्रथम वय 8 वर्ष से 30 वर्ष तक मध्यम वय 30 वर्ष से 60 वर्ष तक 60 वर्ष से आगे । पश्चिम वय भगवान महावीर ने साधना के साथ वय के योग को मान्यता नहीं दी। उन्होंने तीनों ही वय में सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य दास का पक्ष लिया है। 140 प्रश्न व्याकरण सूत्र में भी ब्रह्मचर्य को कुमार आदि सभी अवस्थाओं में आचरणीय 141 दसवैकालिक सूत्र के अनुसार ब्रह्मचर्य का काल वही उचित है जब तक शारीरिक सामर्थ्य हो। कहा है जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, व्याधि न बढ़े और इन्द्रियां क्षीण न हो तब 31
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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