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________________ (1) रोहित मत्स्य - उत्तराध्ययन सूत्र में ब्रह्मचारी के लिए रोहित मत्स्य की उपमा का प्रयोग किया गया है। सामान्य मत्स्य जाल में फँस जाते हैं पर रोहित मत्स्य की यह क्षमता होती है कि वह जाल को काट कर बाहर निकल जाता है। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति काम भोगों के जाल में फँस जाता है पर उठाए हुए भार को वहन करने वाले प्रधान तपस्वी और धीर पुरुष काम-भोगों को छोड़ कर ब्रह्मचर्य को स्वीकार करते हैं। काम भोगों का आकर्षण उन्हें फंसा नहीं सकता। (2) मेरु पर्वत - मेरु पर्वत इतना विशाल और सुदृढ़ होता है कि बड़े से बड़ा तूफान आने पर भी विचलित नहीं होता। इसी प्रकार राग-द्वेष और मोह का त्याग करने वाले जो विचक्षण व्यक्ति होते हैं उनकी आत्म गुप्ति मेरुपर्वत की तरह सुदृढ होती है। 128 (3) अगंधन कुल में उत्पन्न सर्प - सर्प के दो कुल माने जाते हैं - गंधन कुल और अगंधन कुल। अगंधन कुल का सर्प मृत्यु को भले ही अंगीकार कर ले पर वमन किए हुए विष को अपने मुख से फिर नहीं पीता। इसी प्रकार, जो कुलीन व्यक्ति होते हैं वे त्यागे हुए काम-भोगों को पुन: नहीं चाहते। दसवैकालिक और उत्तराध्ययन दोनों ही सूत्रों में इस उपमा का समान उपयोग है। 120 (4) अंकुश से नियंत्रित हाथी - हाथी विशाल और शक्तिशाली जानवर होता है। मदमस्त होने पर वह अंकुश द्वारा अनुशासित होता है। उसी प्रकार सम्बुद्ध, पण्डित और प्रविचक्षण पुरुष प्रेरकों के वचनों से अनुशासित हो जाते हैं। 130 (5) अश्व - साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व इधर-उधर दौड़ता है। परन्तु लगाम से बांध देने पर वह उन्मार्ग में नहीं जाता। इसी प्रकार मन काम भोगों के लिए इधर-उधर दौड़ता है, परन्तु धर्म शिक्षा के द्वारा वह उन्मार्ग में नहीं जाता है। (6) कमल - कमल जल में उत्पन्न होता है परन्तु जल में लिप्त नहीं होता। इसी प्रकार पण्डित पुरुष काम के वातावरण में उत्पन्न तो होता है परन्तु उसमें लिप्त नहीं होता है।' (7) औषध से पराजित रोग - शरीर में उत्पन्न रोग की चिकित्सा के लिए समुचित औषध लेने पर वह आक्रान्त नहीं कर पाता। इसी प्रकार एकान्त बस्ती, मिताहार, जितेन्द्रियता आदि सुरक्षा उपायों से चित्त को राग-रोग आक्रान्त नहीं कर पाता है। 133 (8) महासागर - जिस प्रकार महासागर को पार कर लेने वाले के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी सुतर (सुख से पार करने योग्य) हो जाती है। उसी प्रकार, स्त्री विषयक आसक्तियों का पार पा लेने वाले के लिए अन्य आसक्तियों का पार पाना आसान हो जाता है। 13
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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