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________________ 26. संहननों में वज्र ऋषभनाराच संहनन के समान ब्रह्मचर्य समस्त व्रतों में उत्तम है। यहां उत्तमता प्रतिपादित है। 27. संस्थानों में समचतुरस्र संस्थान के समान ब्रह्मचर्य समस्त व्रतों में उत्तम है। यहाँ पर सुभगता के साथ श्रेष्ठता का निरूपण इस उपमान में किया गया है। 28. ब्रह्मचर्य ध्यानों में परम शुक्ल ध्यान के समान सर्व प्रधान है। इस उपमान से ब्रह्मचर्य की निर्विकारता अभिव्यंजित है। 29. समस्त ज्ञानों में जैसे केवल ज्ञान प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान है। यहाँ निर्विकारता, श्रेष्ठता, निर्मलता आदि ब्रह्मचर्य के दृष्ट गुणों का प्रतिपादन प्रस्तुत उपमान से किया गया हैं। 30. लेश्याओं में परम शुक्ल लेश्या जैसे सर्वोत्तम है वैसे ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान है। यहां सर्वोत्तमता परिलक्षित है। 31. ब्रह्मचर्य व्रत सब व्रतों में इसी प्रकार उत्तम है, जैसे मुनियों में तीर्थंकर उत्तम होते हैं उत्तमता के साथ अनाविलता अभिलक्षित है। 32. ब्रह्मचर्य सभी व्रतों में वैसा ही श्रेष्ठ है जैसे सब क्षेत्रों में महाविदेह क्षेत्र उत्तम है। यहां श्रेष्ठता एवं निरापदता अभिव्यक्त की गई है। 33. पर्वतों में गिरिराज सुमेरु की भांति ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम व्रत है। यहाँ ब्रह्मचर्य की सर्वोत्तमता का प्रतिपादन इस उपमान से किया गया है। 34. जैसे समस्त वनों में नन्दन वन प्रधान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। यहाँ ब्रह्मचर्य के कामयुग (सर्वकामनाप्रदायक) रूप की प्रतिपादना विवेच्य उपमान से हो रही है। 35. जैसे समस्त वृक्षों में सुदर्शन जम्बू विख्यात है, जिसके नाम से यह द्वीप विख्यात है । उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य विख्यात है। इस उपमान के द्वारा ब्रह्मचर्य की गुणवत्ता के कारण उस की श्रेष्ठता अभिव्यंजित है। 36. जैसे अश्वाधिपति, गजाधिपति और रथाधिपति राजा, विख्यात होता है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य व्रताधिपति विख्यात है। यहाँ पर विवेच्य उपमान द्वारा ब्रह्मचर्य की अजेयता प्रतिपादित है। 37. जैसे रथिकों में महारथी राजा श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत सर्वश्रेष्ठ माना है। इस उपमान से ब्रह्मचर्य की उदात्तता, अप्रतिहतता तथा अजेयता के साथ अखण्डता अभिव्यंजित हो रही है। 126 प्रश्नव्याकरण सूत्र के अतिरिक्त दसवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में भी ब्रह्मचर्य विषयक अनेक उपमाओं का सुन्दर व सटीक विवरण मिलता है। जैसे 29
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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