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________________ की मान्यता है कि स्त्रियों की कामना करना भी दुःख का कारण बनता है। वे कहते हैं - हक्खुवउ अंगुलिं ता पुरिसो सव्वम्मि जीवलोअम्मि। कामेंतएण लोए जेण ण पत्तं तु वेमणसं।। अर्थात् संपूर्ण संसार में ऐसा कोई भी आदमी हो जो स्त्री की कामना करते हुए दुःखी ना हुआ हो, वह अपनी अंगुली ऊंची करे। 69 (5) अविश्वसनीय - सूत्रकृतांग सूत्र में स्त्री को अविश्वसनीय कहा गया है। सूत्रकार कहते हैं कि स्त्री का यह स्वभाव होता है कि वह किसी बात को वाणी से स्वीकार करती है, किन्तु कर्म से उसका पालन नहीं करती। वह मन से कुछ और ही सोचती है, वचन से कुछ और ही कहती है तथा कर्म से कुछ और ही करती है, इसलिए स्त्रियों को बह्मायाविनी कह कर अविश्वसनीय कहा गया है। चूर्णिकार ने इसका समर्थन इस प्रकार किया है सुठु वि जितासु सुठु वि पियासु सुठु वि य लद्धपसरासु । अडईसु य महिलासु य विसंभो भे ण कायव्वो ।। अर्थात् अच्छी तरह से परिचित, अच्छी तरह से प्रिय, अच्छी तरह से विस्तृत होने पर भी अटवी और महिला में कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।" उत्तराध्ययन चूर्णि में भी स्त्रियों को अविश्वसनीय मानते हुए त्याज्य बताया गया है - एता हसंति च रूदंति च अर्थ हेतो, विश्वासयंति च परं न विश्वसंति। तस्मान्नरेण कुलशील समन्वितेन, नार्यः श्मशानसुमना इव वर्जनीयाः ।। स्त्रियां हंसती हैं, रोती हैं, धन के लिए। वे पुरुषों को अपने विश्वास में लेती हैं किन्तु उन पर विश्वास नहीं करती। कुल व शील सम्पन्न पुरुष उनको वैसे ही छोड़ देते हैं जैसे श्मशान में ले जाए जाने वाले पुष्ष वहीं छोड़ दिए जाते हैं।" (6) स्वार्थ परायणता - सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने स्त्रियों की स्वार्थ परायणता का सुन्दर चित्रण किया है - समुद्रवीचीचपलस्वभावाः सन्ध्याभ्ररेखा व मुहूर्त्तरागाः ।। स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं, निपीडितालक्तकवत् त्यजंती ।। स्त्रियां समुद्र की लहरों की भांति चंचल स्वभाव वाली और सन्ध्या के मेघ की तरह अल्पकालीन अनुराग वाली होती हैं। अपना काम बन जाने पर स्त्रियां निरर्थक पुरुष को वैसे ही छोड़ देती हैं जैसे बिना पिसा हुआ अलक्तक छोड़ दिया जाता है।" ज्ञानार्णव के बारहवें अध्याय में स्त्री के स्वभाव का विस्तृत चित्रण किया गया है। फिर 131
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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