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________________ हावो मुखविकार : स्याद्, भावश्चित्त समुद्भवः । विलासो नेत्रजो ज्ञेयो, विभ्रमो भ्रूसमुद्भवः।। हाव - मुख से प्रकट होने वाला काम विकार - चेष्टा। भाव - चित्त की भूमिका पर उभरने वाला काम विकार। विलास - नेत्र से व्यक्त होने वाला विकार। विभ्रम - भौहों से व्यक्त होने वाला विकार। विब्बोक - दर्प वश प्रिय वस्तुओं के प्रति होने वाला अनादर का भाव। (2) कामान्धता - सूत्रकृतांग सूत्र में स्त्रियों में अतिकामुकता का संकेत किया गया है। इसके चूर्णिकार ने स्त्रियों की कामवासना का वर्णन इस प्रकार किया है नाग्निस्तृप्यति काष्ठानां, नापगानां महोदधिः। नांतकृत्सर्व भूतानां, न पुंसा वामलोचना।। अर्थात् अग्नि लकड़ी से कभी तृप्त नहीं होती। समुद्र नदियों से तृप्त नहीं होता। मौत प्राणियों से तृप्त नहीं होती, इसी प्रकार स्त्रियां पुरुषों से तृप्त नहीं होती। कामवासना के आवेग में स्त्रियों को हेयोपादेय का भी भान नहीं रहता। सूत्रकार इनके स्वभाव के मनोवैज्ञानिक रहस्यों को उद्घाटित करते हुए कहते हैं "स्त्रियां चाहे सधवा हो या विधवा, आसपास रहने वाले व्यक्ति फिर चाहे वह कुबड़ा हो या अन्धा, की कामना करने लग जाती हैं।" अंबं वा निंब वा अब्भासागुणेण आरूहइ वल्ली। एवं इत्थी तोवि य जं आसन्नं तभिच्छन्ति।। (3) वैमनस्य पैदा करने वाली - यह लोक प्रसिद्ध है कि स्त्रियां वैमनस्य का मूलकारण हैं। चूर्णिकार कहते हैं - अह एताण पगतिया सव्वस्स करति वेमणस्साई। तस्स न करेज मंतुअं जस्स अलं चेयं कामतंतएण।। अर्थात् स्त्रियों की यह प्रकृति है कि वे सभी में वैमनस्य पैदा कर देती हैं। उनकी कामना जिससे पूरी होती हैं, उससे वैमनस्य नहीं करती हैं। भगवती आराधना में महाभारत और रामायण का संदर्भ देकर महायुद्धों का कारण स्त्रियों को बताया गया हैं। (4) दुःख की जननी - सूत्रकृतांग सूत्र में स्त्री को दुःखों की जननी कहा गया है। चूर्णिकार 130
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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