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________________ भावनाबोधमेंसे विचार करने योग्य प्रश्न से क्या निकाल दिया ? ३. अंगूली किससे सुंदर दिखती है ? ४. अंगूलीसे क्या शोभा देता है ? और हाथसें क्या शोभा देता है ? ५. शरीर किससे शोभा देता है? ६. भरतराजाके हृदयमें क्या उत्पन्न हुआ? ७. वैराग्य होनेसे क्या निकल गया ? ८. शुक्ल ध्यानसे क्या उत्पन्न हुआ? ९. केवलज्ञान होने पर क्या किया? अशुचिभावना - सनत्कुमार चक्रवर्ती (पृष्ठ १९) १. दो देव कौनसा रूप लेकर के, कहाँ पर आये? २. उस वक्त सनत्कुमारके शरीर पर क्या लगा हुआ था ? ३. विप्रोने किस रूपमें मस्तक घूमाया ? ४. देवोने रूपकी प्रशंसा की उससे क्या हुआ? ५. राजसभामें देवोने किस रूपमें मस्तक घूमाया ? ६. ब्राह्मणोने क्या कहा ? ७. पान थूकने से क्या हुआ? ८. कायाको झेरमय जानकर सनत्कुमारने क्या किया? ९. सनत्कुमारको वैराग्य आने पर क्या किया? १०. दीक्षाके बाद कितने रोग उत्पन्न हुए ? देव परीक्षा करने आये तब सनत्कुमारने क्या कहा? निवृत्तिबोध (संसारभावना)- मृगापुत्र (पृष्ठ २२) १. मृगापुत्र झरोखेमेंसे क्या देख रहे है ? २. राजमार्ग पर कौन खड़ा है ? ३. मृगापुत्रने मुनिके निरीक्षणसे क्या प्राप्त किया ? ४. जातिस्मरणज्ञान पानेसे उनको क्या याद आ गया ? ५. संसारके दुःख जानकर, वैराग्य होनेसे क्या भावना हुई ? मातापिताके पास क्या मांगते है ? ७. चारित्र पालनेमें क्या क्या मुश्केली आयेगी? ८. मृगापुत्रका दृढ निश्चय देखकर मातापिताने किसकी आज्ञा दी? मृगापुत्रने दीक्षा लेकर क्या प्राप्त किया ? आस्रव भावना - कुंडरिक (पृष्ठ २९) १. मुनिराजका उपदेश सुनकर कुंडरिकने क्या किया? २. संयममें शरीर रोगग्रस्त होनेसे कैसे भाव किये? ३. अपने नगरमें आकर अशोकवाटिकामें झाड़ पर क्या लटकाया? ४. पुंडरिकने कुंडरिकको राज्य देकर स्वयंने क्या किया? ५. कुंडरिकने राज्यमें आकर क्या किया ? ६. रातको उल्टी हो जाने पर कैसे भाव किये? ७. रातको रौद्रध्यानसे मृत्यु होने पर मरकर कहां गया ? संवरभावना - पुंडरिक (पृष्ठ ३०) १. पुंडरिकने कुंडरिककी मुखपटी आदि उपकरणको ग्रहण करके क्या निश्चय किया ? २. पुंडरिक मृत्यु के बाद कहां पर गया ? संवरभावना - वज्रस्वामी (पृष्ठ ३०) १. वज्रस्वामीके रूपका वर्णन सुनकर रुक्मिणीने क्या निश्चय किया? २. धनावह शेठने रुक्मिणी और द्रव्य को लेकर वज्रस्वामीसे क्या कहा? ३. रुक्मिणीने वज्रस्वामीको पिघलानेके लिये क्या उपाय किये? ४. अंतमें रुक्मिणीने क्या किया? निर्जराभावना - दृढप्रहारी (पृष्ठ ३३) १. दृढप्रहारीने ब्राह्मणके घर जाकर क्या किया? २. ब्राह्मणीने उसे क्या कहा? ३. ब्राह्मणीने
SR No.009959
Book TitleDrusthant Katha
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size17 MB
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