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________________ पाठ ३ जैनों का भारतीय कलासंवर्धन में योगदान जैन परम्परा ने भारतीय साहित्य एवं तत्त्वज्ञान को जिस प्रकार योगदान दिया, उसी प्रकार भारतीय कलासंवर्धन में भी अपनी खास छाप छोडी है । मनुष्यप्राणि जिज्ञासा के कारण, ज्ञान के द्वारा विज्ञान और तत्त्वज्ञान का विकास करता है । मनुष्य में अच्छे और बुरे का विवेक होने के कारण, धर्म, नीति और सदाचार के आदर्श प्रस्थापित करता है । मनुष्य का तीसरा विशेष गुण है - सौंदर्य की उपासना । पोषण और रक्षण के लिए मनुष्य जिन पदार्थों का ग्रहण करता है उन्हें भी अधिकाधिक सुन्दर बनाने का प्रयत्न करता है । मानवीय सभ्यता का विकास सौंदर्य की उपासना पर आधारित है । गृहनिर्माण, मूर्ति निर्माण, चित्रनिर्माण, संगीत और काव्य, ये पाँच कलाएँ मानवी जीवन को अधिकाधिक पूर्णता की ओर ले जाती हैं। जैनधर्म के बारे में सामान्यतः कहा जाता है कि इस धर्म में निवृत्ति-संन्यास एवं विरक्ति को प्राधान्य है । जैनधर्म में निषेधात्मक वृत्तियों पर ही भार दिया है । किन्तु यह दोषारोपण जैनधर्म की अपूर्ण जानकारी का परिणाम है । यद्यपि मुनिधर्म में वीतरागता की प्रधानता है तथापि गृहस्थधर्म में कलात्मक प्रवृत्तियों को यथोचित स्थान दिया गया है। आदिनाथ ऋषभदेव के चरित्र में हमने पढा ही हैं कि उन्होंने मानवी उन्नति के लिए असि-मसि-कृषिविद्या-वाणिज्य एवं शिल्प का विशेष प्रणयन किया । समवायांग और औपपातिक, दोनों प्राचीन ग्रन्थों में ७२ कलाओं की नामावली पायी जाती है । कलाओं की शिक्षा देनेवाले कलाचार्य और शिल्पाचार्यों का भी उल्लेख मिलता है। जैन स्तूप : वास्तुकला में जैनों का योगदान प्रथमत: 'मथुरा के स्तूप' के द्वारा स्पष्ट होता है । स्तूप के भग्न अंशों से भी इसका जैनत्व स्पष्ट होता है । इसका काल ईसा पूर्व २०० बताया जाता है । मुनियों की ध्यानधारणा के लिए गुफाएँ बनायी जाती थी । ऐसी गुफाओं में से सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध जैन गुफाएँ बराबर और नागार्जुनी पहाडियों पर स्थित हैं । यह स्थान पटना-गया लोहमार्ग से नजदीक है । इसका काल ईसा पूर्व तीसरी शती माना जाता है । जैन गुफाएँ: उडिसा राज्य के 'कटक के समीपवर्ती उदयगिरि व खण्डगिरि नामक पर्वतों की गुफाएँ ईसवी पूर्व द्वितीय शती की सिद्ध होती है । उदयगिरि की हाथीगुम्फा में कलिंग सम्राट खारवेल का सुविस्तृत शिलालेख प्राकृत भाषा में लिखा हुआ है । इस शिलालेख से यह भी स्पष्ट होता है कि ईसवी पूर्व पाचवी-चौथी शती में भी जैन मूर्तियाँ निर्माण होती थी और उनकी पूजा-प्रतिष्ठा भी होती थी । दक्षिण भारत के बादामी की जैन गुफा उल्लेखनीय है । बादामी तालुका में, ऐहोल नामक ग्राम के समीप जैन गुफाएँ हैं, जिनमें जैन मूर्तियाँ विद्यमान है । गुफानिर्माण की कला एलोरा में चरम उत्कर्ष को प्राप्त हुई । यहाँ बौद्ध-हिन्दु और जैन, तीनों सम्प्रदायों के शैलमन्दिर बने हुए हैं । यहाँ पाँच जैन गुफाएँ हैं । मनमाड रेल्वेजंक्शन के समीप 'अंकाईतंकाई' नामक गुफासमूह है । तीन हजार फूट ऊँचे पहाडियों में सात गुफाएँ हैं । वैसे तो, पूरे भारतभर में और भी कई स्थानों पर जैन गुफाएँ पायी जाती है।
SR No.009956
Book TitleJainology Parichaya 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2013
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size304 KB
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