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________________ बन्धाधिकार ( ६१ ) जाता हूँ, ऐसा विकल्प करना अज्ञान है । यह अज्ञान जिनके है वे मिध्यादृष्टि हैं, जिनके यह अज्ञान नहीं वे सम्यग्दृष्टि हैं । १७६ - यह विकल्प अज्ञान क्यों है ? समाधान - चूंकि अन्य द्रव्य किसी अन्य द्रव्यकी परिणति नहीं कर सकता, सो कोई जीव किसी जीवको न मार सकता न कोई किसीसे मारा जाता, इस कारण उक्त विकल्प ज्ञान है । जैसे कोई जीव मरता है तो वह अपने भावकी आयुक्षयसे ही तो मरता है, यदि उसके आयुका क्षय न हो तो मरा संभव ही नहीं है | किसीकी आयुको न तो तुम हर सकते हो और न तुम्हारी आयुको अन्य कोई हर सकता है । फिर जो वात की नहीं जा सकती उस बातका अध्यवसाय करना अज्ञान नहीं तो और क्या है ? अज्ञान ही है। १७७ - इसी प्रकार जीवके कर्तृत्वका श्रध्यवसाय भी अज्ञान हैं। जैसे कि किसीने यह प्रतीति की कि "मैं दूसरोंको जिलाता हॅू या मैं दूसरों के द्वारा जिलाया जाता हूँ" यह भी अज्ञान भाव है । अज्ञान ही वन्धका कारण है । 1 १७८ -- यह विकल्प श्रज्ञान क्यों है ? उत्तर - अन्य द्रव्य किसी अन्य द्रव्यकी परिणति नहीं करता सो कोई जीव किसी जीवको न जीवन' दे सकता और न किसी जीवसे जीवन ले सकता । जैसे कोई जींव जीता' है तो वह अपनी ही आयुके उदयसे जीता है, यदि उसके आयुका उदय न हो तो कोई जिला नहीं सकता | आयुकर्म किसीका न तुम दे सकते और न तुम्हारी आयुकर्म अन्य कोई तुम्हें दे सकता। फिर, जो वात की नहीं जा सकती उसका अध्यवसाय करना अज्ञान नहीं तो और क्या है ? अज्ञान ही है । १७६- इसी प्रकार “मैं अमुकको दुःखी करता हूँ, अमुकको सुखी करता हूँ" ये अध्यवसाय भी अज्ञान' है, क्योंकि दुःखी सुखी होना जीव के अपने अपने कर्मोदयसे ही संभव है । जैसे कोई जीव सुखी होता है। तो वह अपने पूर्वार्जित सातावेदनीयके उदयसे सुखी होता है ।
SR No.009948
Book TitleSamaysara Drushtantmarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1960
Total Pages90
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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