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________________ (६०) समयसारदृष्टान्तमर्म होती तो दूसरा मल्ल भी तो जो देहमें तैल नहीं लगाये हुए है, उसी प्रकार व्यायामकी चेष्टा करता है उसके धूल क्यों नहीं चिपटती? इससे सिद्ध है कि जैसे व्यायाम चेष्टाके कारण धूल नहीं चिपटती इसी प्रकार मन, वचन, कायके योग (हलन चलन) के कारण कर्म-बन्ध नहीं होता। १७३-कार्माणवर्गणाओंसे व्याप्त लोकमें रहनेके कारण भी कर्मबन्ध नहीं होता, क्योंकि यदि कार्माणवर्गगणाव्याप्त लोकमें रहनेके कारण कर्मवन्ध हुआ करता तो सिद्ध भगवान भी तो लोकमें हैं उनके कर्मवन्ध क्यों नहीं हो जाता । जैसे कि धूल भरे अखाड़ेमें जानेसे धूल चिपटती होती तो दूसरा मल्ल भी नो जिसके कि देहमें तैल नहीं लगा है, उसी धूल भरे अखाड़ेमें व्यायाम करता है, उसके धूल क्यों नहीं चिपटती ? इससे सिद्ध है कि जैसे धूल भरे अखाड़ेमें जानेसे धूल नहीं चिपटती इसी प्रकार कार्माणवर्गणाव्याप्त लोकमें रहनेसे कर्म नहीं बंधता। १७४-अब केवल जिज्ञासा एक यही रह जाती है कि आखिर कर्मवन्ध किस कारणसे होता? जैसे कि दृष्टान्तमें अवशिष्ट जिज्ञासा यही रह जाती कि आखिर उस मल्लके धूल किस कारणसे चिपटी ? समाधान यह है कि जैसे देहमें स्नेह (तेल) लगनेके कारण उस मल्लके वहां धूल चिपट गई, इसी प्रकार स्नेह (रागादिविभाव) होनेके कारण जीवके कर्मवन्ध हो जाता है । यहो इतना विशेष नानना कि मात्र रागसे कर्मवन्ध साधारण होता है, किन्तु रागमें राग होनेसे अथवा रागादिको उपयोग भूमिमें ले जानेसे कर्मबन्ध विशेष होता है। कर्मवन्धकी विशेषता संसारका मूल है । उक्त साधारण कर्मवन्ध संसारवृद्धिका कारण नहीं, किन्तु अल्पकालमें उसकी भी निर्जरा होकर निर्जरा हो ही जायगी। १७५-रागादि परिणामको उपयोग भूमिमें ले आना ही अज्ञान परिणाम है ! अज्ञान परिणाम कर्मवन्धका कारण है। जैसे कि कोई • यह मानता है कि मैं पर जीवोंको मारता हूँ या पर नीवाँसे मैं मारा
SR No.009948
Book TitleSamaysara Drushtantmarm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1960
Total Pages90
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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