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________________ M ६०१ श्रीप्रवचनसारटोका । १ शंकित दोष-यह भोजन जैसे अशन-भात आदि, पानकदूधादि, खाद्य-लाडू आदि, स्वाद्य-लवंग इलायची आदि लेने योग्य हैं या नहीं है-इनमें कोई दोष तो नहीं है ऐसी शंका होनेपर भी ले लेना सो शंकित दोष है। २ मृक्षित दोष-दातार यदि चिकने हाथ व चिकनी कलछी आदिसे भात आदि देवे उसको लेना सो मृक्षित दोष है । कारण यह है कि चिकने हाथ व वर्तन रखनेसे सन्मूर्छन जंतु पैदा हो जाते हैं। ३ निक्षिप्त दोष-सचित्त अप्राशुक पृथ्वी, सचित्तजल, सचित्त अग्नि, सचित्त बनस्पति, सचित्त वीज व त्रस जीवोंके ऊपर रक्खे हुए भोजनपान आदिको देनेपर ले लेना सो निक्षिप्त दोष । ४ पिहित दोष-सचित्त पृथ्वी, वनस्पति पत्ते आदिसे ढकी हुई व भारी अचित्त द्रव्यसे ढकी हुई भोजनादि सामग्रीको निकालकर दातार देवे तो उसको ले लेना सो पिहित दोप है । ५ संव्यवहार दोष-दातार धवड़ाकर जल्दीसे विना देखे भाले वस्त्र व वर्तन हटाकर व लेकर भोजनपान देवे उसको ले लेना संव्यवहार दोष है। ६ दायक दोष-नीचे लिखे दातारोंसे दिया हुआ भोजन ले लेना सो दायक दोष है (१) सूतिः-जो वालकको पालती है अर्थात् जो प्रसूतिमें है ऐसी स्त्री अथवा जिसको सुतक हो (२) सुन्डी-जो स्त्री या पुरुष मद्यपान लम्पटी हो (३) रोगी-जो स्त्री या पुरुष रोगी हो (४) मृतक-जो मसानमें जलाकर स्त्री पुरुष आए हों व जिनको
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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