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________________ [ ६१ तृतीय खण्ड । मृतकका सूतक हो (मृतक सुतकेन यो जुष्टः) (५) नपुंसक - जो न पुरुष हो न स्त्री हो (६) पिशाचवान् - जिस किसीको वायुका रोग हो या कोई व्यंतर सता रहा हो (७) नग्न जो कोई बिलकुल नग्न होकर देवे (८) उच्चार - जो मूत्रादि करके आया हो (९) पतित- जो मूर्छा आदिसे गिर पड़ा हो (१०) वान्त - जो वमन करके आया हो (११) रुधिर सहित - जो रुधिर या रक्त सहित हो (१२) वेश्या या दासी (१३) आर्यिका - साध्वी (१४) पंचश्रमणिका-लाल कपड़ेवाली साध्वी आदि (१५) अंगमृक्षिका-अंगको मर्दन करनेवाली (१६) अतिवाला या मूर्ख (१७) अतिवृद्धा या वृद्ध (१८) भोजन करते हुए स्त्री या पुरुष (१९) गर्भिणी स्त्री अर्थात् पंचमासिका जिसको पांच मासका गर्भ होगया (२०) जो स्त्री या पुरुष अंधे हों (२१) जो भीत आदिकी आड़ में हो (२२) जो वैठे हों (२३) जो ऊंचे स्थानपर हों (२-४) जो बहुत नीचे स्थानपर हो (२५) 'जो मुंहकी भाफ आदि से आग जला रहे हों (२६) जो अग्निको धौंक रहे हों (२७) जो काष्ठ आदिको खींच रहे हों व रख रहे हों (२८) जो अग्रिको हों (२९) जो जल आदिसे, अग्रिको बुझा अग्निको इधर उधर रख रहे आदिको हटा रहे हों (३२) जो अग्निके ऊपर कूंडी आदि ढक रहे हों (३३) जो गोबर मट्टी आदिसे लीप रहे हों (३४) जो स्नानादि कर रहे हों (३५) जो दूध पिलाती बालकको छोड़कर देने. आई हो । इत्यादि आरम्भ करनेवाले व अशुद्ध स्त्री पुरुषके हाथसे दिये हुए भोजनको लेना दायक दोष है । हों (३१) जो बुझी हुई लकड़ी " भस्म आदि से ढक रहे रहे हों (३०) जो
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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