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________________ [५५ तृतीय खण्ड। १३ उद्भिन्न दोष-जो घी शक्कर गुड़ आदि द्रव्य किसी भाजनमें मिट्टी या लाख आदिसे ढके हुए हों उनको उघाड़कर या खोलकर साधुको देना सो उदभिन्न दोष है। इसमें चींटा आदिका प्रवेश होजाना सम्भव है। १४ मालारोहण दोप-काठ आदिकी सीढ़ीसे घरके दूसरे तीसरे मालपर चढ़कर वहांसे साधुके लिये लड्ड शक्कर आदि लाकर साधुको देना सो मालारोहण दोष है । इससे. दाताको विशेष आकुलता साधुके उद्देश्यसे करनी पड़ती है। १५ आच्छेद्य दोष-राजा व मंत्री आदि ऐसी आज्ञा करें कि जो गृहस्थ साधुको दान न करेगा उसका सब द्रव्य हर लिया जायगा व वह ग्रामसे निकाल दिया जायगा । ऐसी आज्ञाको सुनके भयके कारण साधुको आहार देना सो आच्छेद्य दोष है। १६ अनीशार्थ दोष या निषिद्ध दोष-यह अनीशार्थ दोष दो प्रकार है । ईश्वर अनीशार्थ और अनीश्वर अनीशार्थ। जिस भोजनका स्वामी भोजन देना चाहे परन्तु उसको पुरोहित मंत्री आदि दूसरे देनेका निषेध करें, उस अन्नको जो देवे व लेवे तो ईश्वर अनीशार्थ दोष है। जिस दानका प्रधानं खामी न हो और वह दिया जाय उसमें अनीश्वर अनीशार्थ दोप है । उसके तीन भेद हैं व्यक्त, अव्यक्त और व्यक्ताव्यक्त । जिस भोजनका कोई प्रधान स्वामी न हो, उस भोजनको, व्यक्त अर्थात् प्रेक्षापूर्वकारी प्रगट वृद्ध आदि, अव्यक्त अर्थात् अप्रेक्षापूर्वकारी बालक व परतंत्र आदि, व्यक्ताव्यक्त. दोनों -मिश्ररूप कोई देना चाहे व कोई निषेध करे-ऐसे तीन तरहकाभोजन
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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