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________________ ५४] श्रीप्रवचनसारटीका। दूसरेका सचित्त द्रव्य गाय भैंसादि किसीको देकर बदलेमें आहार लेकर देना सो स्वद्रव्य परद्रव्य क्रीततर दोप है । वैसे ही अपना कोई मन्त्र या विद्या तथा दूसरेके द्वारा मंत्र या विद्या देकर बदलेमें आहार लेकर देना सो स्वभाव परभाव क्रीततर दोप है। १० ऋण दोप या प्रामित्य दोष-साधुके भिक्षाके लिये, घरमें प्रवेश होजानेपर किमीसे भोजन उधार लाकर देना । जिससे कर्ज मांगे उसको यह कहकर लेना कि मैं कुछ बढ़ती पीछे दूङ्गा वह सवृद्धि ऋण दोप है व उतना ही दूङ्गा वह अवृद्धि ऋण दोष है । यह ऋणदाताको क्लेशका कारण है। ११ परावर्त दोष-साधुके लिये किसीको धान्य देकर बदले में चावल लेकर व रोटी लेकर आहार देना सो परावर्त दोप है । साधुके गृह आजानेपर ही यह दोष समझमें आता है। १२ अभिघट या अभिहृत दोप-इसके दो भेद हैं । देश अभिघट दोष, सर्व अभिघट दोष, एक ही स्थानमें सीधे पंक्ति बंद तीन या सात घरोंसे भात आदि भोजन लाकर साधुको देना सो. तो आचिन्न है अर्थात् योग्य है । इसके विरुद्ध यदि सातसे ऊपरके घरोंसे हो व सीधे पंक्तिवन्द घरोंके सिवाय उल्टे पुलटे एक या अनेक घरोंसे लाकर देना सो अनाचिन्न अर्थात् अयोग्य है। इसमें देश अभिघट दोष है । सर्व अभिघट दोष चार प्रकार है। अपने ही ग्राममें किसी भी स्थानसे लाकर कहीं पर देना, सो. स्वग्राम अभिघट दोष है, पर ग्रामसे अपने ग्राममें लाकर देना सो परग्राम अभिघट दोष है । स्वदेशसे व परदेशसे अपने ग्राममें लाकर देना सो स्वदेश व परदेश अमिघट दोष है ।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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