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________________ तृतीय खण्ड। [५३ ६-बलि दोष-जो भोजन किसी अज्ञानीने यक्ष व नाग आदिके लिये बनाया हो और उनको भेट देकर जो बचा हो वह साधुओंके देनेके लिये रक्खा हो अथवा संयमियोंके आगमनके निमित्त जो यक्षोंके सामने पूजनादि करके भेट चढ़ाना सो सव बलि दोष है। ___प्राभूत दोष या प्रावर्तितदोष-इसके वादर और सूक्ष्म दो भेद हैं । हरएकके भी दो भेद हैं-अपकर्षण और उत्कर्पण । जो भोजन किसी दिन, किसी पक्ष व किसी मासमें साधुको देना विचारा हो उसको पहले ही किसी दिन, पक्ष या मासमें देना सो अपकर्षण बादर प्राभूत दोष है जैसे सुदी नौमीको जो देना विचारा था उसको सुदी पञ्चमीको देना । जो भोजन किसी दिन आदिमें देना विचारा था उसको आगे जाकर देना जैसे चैत मासमें जो देना विचारा था उसको वैशाख मासमें देना सो उत्कर्षण वादर प्राभृत दोष है। जो भोजन अपरान्हमें देना विचारा था उसको मध्यान्हमें देना व जिसे मध्यान्हमें देना विचारा था उस को अपरान्हमें देना सो सूक्ष्म अपकर्षण व उत्कर्षण प्राभृत दोष है। -प्रादुप्कार दोष-साधु महाराजके घरमें आजानेपर भोजन व भाजन आदिको एक स्थानसे दूसरे स्थानमें लेनाना यह संकमण प्रादुष्कार दोष है । तथा साधु महाराजके घरमें होते हुए वरतनोंको भस्मसे मांजना व पानीसे धोना व दीपक जलाना यह प्रकाशक प्रादुप्कार दोष है । इसमें साधुके उद्देश्यसे आरम्भका दोष है। ९ क्रीततर दोष-क्रीततर दोष द्रव्य और भावसे दो प्रकार है। हरएकके स्व और परके भेदसे दो दो भेद हैं। ' संयमीके भिक्षाके लिये घरमें प्रवेश हो जानेपर अपना या
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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