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________________ ३५८] श्रोप्रवचनसारटोका । उत्सर्ग मार्ग है। जहां प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, वन्दना, स्तुति, आहार विहार, धर्मोपदेश. यावृत्य आदि है, वह शुभोपयोगरूप अपवाद मार्ग है । साधुको जबतक पूर्ण साधुपना अर्थात् पूर्ण कषाव रहितपना प्राप्त न होजावे तबतक दोनों मार्गोंकी अपेक्षा रखते ए वर्तना चाहिये। जब उत्सर्ग मार्ग में न ठहर सके तब अपवाद मानमें आ जावे और अपवाद मार्गमे चलते हुए उत्सर्गपर जानेकी उत्कंटा रक्खे । यदि कोई उत्सर्ग मार्ग पर चलनेका हठ करे और उसमें ठहर न सके तो आर्तध्यानसे भृष्ट हो जायगा तथा जो अपवाद मार्गमें चलता हुआ उसीमें मग्न हो जावे, उत्सर्ग मार्गकी भावना न करे तो वह कभी शुद्धोपयोग रूप साक्षात् भाव मुनिपदको न पाकर अपना आत्महित नहीं कर सकेगा। इससे हठ त्यागकर जिसतरह मोक्षपद रूपी साध्यकी सिद्धि हो सके उस तरह वर्तना योग्य है। अन्तमें स्वामीने बताया है कि आत्मा और अनात्माके स्वरू. पका निश्चय न करके मिथ्या श्रद्धान ही संसार तत्त्व है । इसीसे संसारमें भ्रमणकारी घोर कर्मोका बंध होता रहता है और यह जीव अनंत काल तक चार गति रूप संसारमें भ्रमण किया करता है। जो स्याद्वाद नयसे आत्माके भिन्न २ धर्मोको नहीं समझे तथा अतींद्रिय आनन्दको न पहचाने तो अनेक वार साधुके अठाईस मूल गुण पालने पर भी व घोर तपस्या करते रहने पर भी सिद्धि नहीं हो सकी है। फिर मोक्ष तत्त्वको बताया है कि जो साधु आत्मा और अनात्माका यथार्थ स्वरूप जानकर निज परमात्म स्वभावका रोचक
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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