SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ anuman manawanwwwwwwwwww तृतीय खण्ड। ३५६ होकर निश्चय व्यवहार रत्नत्रयका साधन करता हुआ, निर्विकल्प समाधिरूप परम उत्सर्ग साधु मार्गमें आरूढ़ होकर पत्तिः श्रनण होजाता है। वह निश्चय रत्नत्रयमई स्वसंवेदनसे उत्पन्न परमादको भोगता हुआ मोक्षतत्व होनाता है, अर्थात् वह बहुत शीघ्र निर्वाणका लाभ कर लेता है। फिर यह समझाया है कि इस मोक्ष तत्वका उपाय भले प्रकार पदार्थाका श्रद्धान व ज्ञान प्राप्त करके वाहरा व भीतरी परिग्रहको त्यागकर जितेंद्रिय होकर यथार्थ साधु पदके चारित्रका अनुष्ठान करना है। पश्चात् यह कहा है कि जो शुद्धोपयोगमें आरूढ़ होजाता है वही क्षपक श्रेणी चढ़कर मोहका नाशकर फिर अन्य घा तैया कमौका क्षयकर केवलज्ञानी अर्हत् परमात्मा होजाता है, पश्चात् सर्व कर्मोंसे रहित हो परम सिद्ध अवस्थाका लाभ कर लेता है। यहांपर आचार्यने पुनः पुनः उस परम समतामई शुद्धोपयोगको नमस्कार क्रिया है जिसके प्रसादसे आत्मा स्वभावमें तन्मय हो परमानन्दका अनुभव करता हुआ अनंतकालके लिये संसार भ्रमणसे छूटकर अविनाशी पदमें शोभायमान होजाता है। अंतमें यह आशीर्वाद दी है कि जो कोई इस प्रवचनसारको पढ़कर अपने परमात्म पदार्थका निर्णय करके, श्रावककी ग्यारह प्रतिमा रूप चर्याको पालता है वह स्वर्ग लाभकर परम्परा निर्वाणका भागी होता है तथा जो साधुके चारित्रको पालता है वह उसी भवसे या अन्य किसी भवसे मोक्ष हो जाता है। वास्तवमें यह प्रवचनसार परमागम ज्ञानका समुद्र है जो
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy